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Fact Check
सोशल मीडिया पर काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ा एक कोलाज शेयर कर दावा किया गया है कि इसमें मौजूद तस्वीरें उस वक्त की हैं, जब काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के दौरान कई मंदिरों को तोड़ा गया था।
फेसबुक पर All India Parisangh नामक पेज ने वायरल कोलाज को शेयर करते हुए तस्वीरों को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण के दौरान हुई तोड़फोड़ का बताया है।
ट्विटर पर भी कुछ यूजर्स ने वायरल कोलाज को काशी कॉरिडोर में हुए निर्माण कार्य का बताकर शेयर किया है।
ट्वीट का आर्काइव लिंक
दरअसल, पिछले दिनों ज्ञानवापी मस्जिद में हुए सर्वे के बाद काशी विश्वनाथ मंदिर एक बार फिर चर्चा में है। इस सर्वे को लेकर जहां हिंदू पक्ष दावा कर रहा कि वहां शिवलिंग है, वहींं मस्जिद का प्रबंधन कमेटी ने शिवलिंग मिलने वाले दावे को खारिज करते हुए उसे वजूखाने के बीच में लगा एक फव्वारा बताया। मस्जिद प्रबंधन समिति की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को वाराणसी जिला जज की अदालत में भेज दिया है। लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कथित तौर पर ज्ञानवापी मस्जिद में पाए गए देवताओं (शिवलिंग) की पूजा की इजाजत मांगने वाला एक नया मुकदमा फास्ट ट्रैक कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया है। अब इस मामले पर 30 मई को सुनवाई होगी।
बता दें, काशी कॉरिडोर प्रोजेक्ट का लोकार्पण पीएम नरेंद्र मोदी दिसंबर 2021 में किया था। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पीएम नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ मंदिर के विस्तारीकरण और पुनरोद्धार के लिये 8 मार्च, 2019 को इस प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया था। बतौर रिपोर्ट, पूरे कॉरिडोर को लगभग 50,000 वर्ग मीटर के एक बड़े परिसर में बनाने के अलावा कॉरिडोर में 24 भवन भी बनाए जाने पर काम हुआ है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर प्रोजेक्ट के निर्माण में करीब 400 मकानों और सैकड़ों मंदिरों और और लगभग 1400 लोगों को शहर में कहीं और बसाया गया है। इसी बीच इस कोलाज को शेयर कर दावा किया गया है कि इसमें मौजूद तस्वीरें वाराणसी कॉरिडोर से सम्बंधित हैं।
वायरल कोलाज में सबसे ऊपर और नीचे बाईं तरफ मौजूद तस्वीर 1 और 2 का सच
पड़ताल के दौरान हमने दोनों तस्वीरों को बारी-बारी से रिवर्स सर्च किया। हमें Reclaim Temples नामक ट्विटर हैंडल द्वारा साल 2016 में किए गया एक ट्वीट प्राप्त हुआ। ट्वीट के अनुसार, दोनों तस्वीरें राजस्थान के जयपुर की हैं, जब 2015 में रोजगारेश्वर महादेव मंदिर को गिरा दिया गया था।
पड़ताल के दौरान हमें ‘इंडिया टुडे’ द्वारा जुलाई 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट प्राप्त हुई। इस रिपोर्ट के अनुसार, यह तस्वीर जयपुर में 2015 में खींची गई थी, जब शहर में मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए छोटे-बड़े तकरीबन 100 मंदिरों को तोड़ा गया था। बता दें कि 2015 में राजस्थान में वसुन्धरा राजे के नेतृत्व वाली बीजेपी की सरकार थी। उस वक्त मंदिरों को तोड़े जाने को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने राजस्थान सरकार की आलोचना की थी।
इसके अलावा, ये तस्वीर जुलाई 2015 में हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में भी मिली। रिपोर्ट के अनुसार, ये राजस्थान का रोजगारेश्वर महादेव मंदिर था, जो करीब 250 साल पुराना था।
इसके अलावा हमें ये तस्वीर Janprahari Express द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में भी प्राप्त हुई है।
कोलाज में मौजूद तस्वीर 3 और 4 का सच
हमने कोलाज में मौजूद अन्य दोनों तस्वीरों को एक एक कर रिवर्स सर्च किया। हमें अमर उजाला द्वारा 20 दिसंबर 2018 को प्रकाशित एक रिपोर्ट प्राप्त हुई। रिपोर्ट के अनुसार, वाराणसी के रोहित नगर क्षेत्र में एक प्लाट पर डाले गए मलवे में से 125 से अधिक खंडित शिवलिंग मिले। रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा माना जा रहा कि यह मलवा काशी कॉरिडोर के लिए चल रहे निर्माण कार्य से निकला मलवा किसी ठेकेदार ने फेंक दिया है, लेकिन मंदिर प्रशासन ने कॉरिडोर का मलवा होने से साफ इंकार कर दिया। अमर उजाला की रिपोर्ट में वायरल तस्वीर संलग्न है।
इसके अलावा, हमें मीडिया वेबसाइट ‘क्विंट’ दवारा 20 दिसंबर 2018 को प्रकाशित एक रिपोर्ट प्राप्त हुई। रिपोर्ट के अनुसार, वाराणसी के रोहित नगर में इमारतों के मलबे में बहुत से शिवलिंग भी पड़े नजर आए। स्थानीय लोगों की नाराजगी और सूचना पर स्थानीय लोग और ने वहां पहुंचकर विरोध जताया। क्विंट की रिपोर्ट में वायरल तस्वीर को देखा जा सकता है।
जनसत्ता द्वारा 20 दिसंबर 2018 को इस तस्वीर को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी।
इन तस्वीरों को लेकर POLICE COMMISSIONERATE VARANASI के ट्विटर हैंडल द्वारा 21 दिसंबर 2018 को किया गया एक ट्वीट प्राप्त हुआ। ट्वीट में वाराणसी के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक वाराणसी में रोहित नगर में मिले शिवलिंग पर बयान दे रहे हैं। उन्होंने कहा, “रोहित नगर में शिवलिंग मिलने का मामला सामने आया है। जिस पर क्षेत्रीय जनता द्वारा एक एफआईआर रजिस्टर कराई गई है। इस मामले में एसपी सिटी क्राइम द्वारा मामले की गहराई से जांच की गई। जिसमें ये निकल कर सामने आया कि वाराणसी के मदनपुरा इलाके में सुमन मिश्रा का मकान है, जिसकी छत गिर जाने के कारण वहां से फेंके गये मलवे में से शिवलिंग आया है। इसका काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से कोई संबंध नही है।”
Newschecker ने इस मामले में रोहित नगर में रहने वाले स्थानीय निवासी नितिन कुमार राय से संपर्क किया। उन्होंने हमें बताया, “ये मामला दिसबंर 2018 का है। जब एक सुबह हमारी नजर अपने घर के बगल में पड़े मलबे के ढेर पर पड़ी। वहां करीब 100 से ऊपर शिवलिंग जर्जर अवस्था में पड़े थे। कुछ शिवलिंग तीन फीट से भी ऊपर थे। उस वक्त शहर में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के प्रोजेक्ट के लिए जमीन अधीग्रहण का भी काम चल रहा था। हमें लगा कि ये काशी कॉरिडोर प्रोजेक्ट से जुड़ा होगा। इसकी एक तस्वीर हमने उसी वक्त ट्विटर पर पोस्ट की। सूचना पाकर प्रशासन सक्रिय हुआ और मौके पर पहुंचकर वहां पड़े शिवलिंग को हटाने का काम शुरू कर दिया। वो शिवलिंग आज भी लंका थाने में पड़े हैं और उनकी पूजा होती है।”
यह दोनों तस्वीरें वाराणसी की हैं। पुलिस इस मामले में कह रही कि ये काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से जुड़ा मामला नहीं था। हालांकि, हम इसकी आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं करते हैं।
इस तरह हमारी पड़ताल में स्पष्ट है कि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के नाम पर वायरल कोलाज की चार में से दो तस्वीरें राजस्थान के जयपुर की हैं और लगभग सात साल पुरानी हैं। बाकी दो तस्वीरें वाराणसी की हैं जो लगभग चार साल पुरानी हैं। वाराणसी की ये दोनों तस्वीरें काशी कॉरिडोर से जुड़ी हैं या नहीं हम इसकी आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं करते हैं। लेकिन राजस्थान की पुरानी तस्वीरों को शेयर कर सोशल मीडिया पर भ्रम फैलाया जा रहा है।
Our Sources
Tweet by Reclaim Temple on December 20.2016
Report Published by India Today on July 7, 2015
Report Published by Hindustan Times on July 7, 2015
Report Published by Janprahari Express
Report Published by Amar Ujala on December 20, 2018
Report Published by The Quint on December 20, 2018
Report Published by Jansatta on December 20,2018
Tweet by POLICE COMMISSIONERATE VARANASI on December 21, 2018
Telephonic Conversation with Varanasi Resident Nitin Kumar Rai
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