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  • Last Updated on मई 31, 2024 by Neelam Singh सारांश एक सोशल मीडिआ वीडियो के जरिए दावा किया जा रहा है कि धनिया के बीज का पानी पीने से पिंपल या फुंसी की समस्या नहीं होती है। जब हमने इस वीडियो की जांच की तब पाया कि यह दावा अधिकतर गलत है। दावा इंस्टाग्राम पर जारी एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि धनिया के बीज का पानी पीने से पिंपल या फुंसी की समस्या नहीं होती है। तथ्य जाँच फुंसी क्यों होती हैं? फुंसी को अंग्रेजी में acne या zits के नाम से भी जाना जाता है। यह त्वचा पर होने वाले सूजन हैं, जो त्वचा के रोमछिद्र के बंद होने के कारण होते हैं। ये आमतौर पर चेहरे, गर्दन, छाती, पीठ और कंधों पर हो सकते हैं। फुंसी तब होती है, जब अतिरिक्त तेल, मृत त्वचा कोशिकाएं और बैक्टीरिया रोमछिद्रों को बंद कर देते हैं, जिससे व्हाइटहेड्स, ब्लैकहेड्स या सिस्ट बनते हैं। हार्मोन, आनुवंशिकी, आहार, तनाव और कुछ दवाएं फुंसी के विकास में योगदान कर सकते हैं। फुंसी और मुंहासों में मुख्य अंतर क्या है? देखा जाए, तो मुहांसे और फुंसी को अक्सर एक दूसरे के स्थान पर इस्तेमाल किया जाता है लेकिन उनके बीच एक छोटा सा अंतर है। फुंसी एक छोटी, उभरी हुई गांठ होती है, जो बंद छिद्रों के कारण होती है, जिसमें लालिमा, सूजन और मवाद दिखाई दे सकता है। वहीं मुंहासे एक पुरानी त्वचा की स्थिति है, जिसमें ना केवल मुंहासे होते हैं बल्कि ब्लैकहेड्स, व्हाइटहेड्स और अन्य दाग-धब्बे भी होते हैं। यह हार्मोनल उतार-चढ़ाव, अतिरिक्त तेल उत्पादन और बैक्टीरिया के विकास जैसे विभिन्न कारकों से उत्पन्न होता है, जिसके परिणामस्वरूप पपल्स, पस्ट्यूल, नोड्यूल और सिस्ट जैसे घाव उत्पन्न होने लगते हैं, जबकि एक फुंसी एक एकल उभार को दर्शाता है। मुंहासे त्वचा की समस्याओं का एक व्यापक हिस्सा है, जिसके लिए व्यापक उपचार रणनीतियों की आवश्यकता होती है। फुंसी होने का क्या कारण है? फुंसी कई कारणों से होती है, जिसमें त्वचा में तेल (सीबम) की अधिकता, त्वचा के रोमछिद्र बंद होना, बैक्टीरिया का बढ़ना, हार्मोनल उतार-चढ़ाव (खासकर किशोरावस्था के दौरान), आनुवंशिक प्रवृत्ति, खान-पान की आदतें, तनाव और पर्यावरण संबंधी प्रभाव शामिल है। इसके अलावा, दवाएं और घर्षण भी उनके विकास में योगदान दे सकते हैं। क्या धनिया के बीज का पानी फुंसी (pimples) को रोकने में मदद कर सकता है? अधिकतर नहीं। धनिया के बीज के पानी में फुंसी को रोकने की क्षमता है इस तथ्य का वैज्ञानिक प्रमाणों द्वारा दृढ़ता से समर्थन नहीं किया गया है। जबकि कुछ लोग इसके एंटीऑक्सीडेंट और सूजनरोधी गुणों के कारण त्वचा देखभाल में इसके उपयोग की सिफारिश करते हैं। विशेष रूप से फुंसी को रोकने के लिए इसकी प्रभावकारिता पर निर्णायक शोध की कमी है। स्किनकेयर यानी की त्वचा देखभाल के परिणाम अत्यधिक व्यक्तिगत होते हैं, जो हर व्यक्ति के लिए भिन्न हो सकते हैं। त्वचा के प्रकार, जीवनशैली और किसी भी अंतर्निहित चिकित्सा स्थिति कारकों पर विचार करते हुए, एक व्यापक दृष्टिकोण के साथ फुंसी के उपचार का दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। जबकि त्वचा देखभाल में धनिया के बीज के मिश्रण जैसे प्राकृतिक उपचारों को शामिल करना कुछ लाभ प्रदान कर सकता है लेकिन बिना चिकित्सकीय मार्गदर्शन के केवल ऐसे उपचारों पर निर्भर रहना बेहतर परिणाम नहीं दे सकता है। फुंसी की रोकथाम में धनिया के बीज की सटीक प्रभावशीलता को निर्धारित करने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है। इस विषय में डॉ. संदीप अरोड़ा, MBBS, MD और अनुभवी त्वचा विशेषज्ञ ने बताया, “धनिया के बीज का इस्तेमाल आमतौर पर खाना पकाने में किया जाता है। इनमें लिनालूल जैसे आवश्यक तेल होते हैं, जिनमें सूजन-रोधी गुण होते हैं और ये फुंसी पैदा करने वाले बैक्टीरिया से लड़ सकते हैं। हालांकि, सिर्फ धनिया का इस्तेमाल करने से ज़्यादा मदद नहीं मिल सकती। तेलों को प्रभावी ढंग से काम करने के लिए पर्याप्त मात्रा में केंद्रित होना चाहिए। उचित फुंसी उपचार के रूप में प्रयोग करने के लिए आवश्यक है कि त्वचा विशेषज्ञ से जांच के बाद ही इन उपायों को अपनाया जाना चाहिए। क्योंकि कुछ उपाय वास्तव में फुंसी को गंभीर समस्या बना सकते हैं।” धनिया का पानी पीने के संभावित दुष्प्रभाव क्या हैं? धनिया आमतौर पर सुरक्षित होता है लेकिन इससे संक्रमण भी हो सकता है। जैसे- त्वचा पर दानों का उग आना या सांस लेने में कठिनाई महसूस होना। धनिया के अत्यधिक सेवन से पाचन संबंधी परेशानी हो सकती है, जैसे- दस्त या पेट फूलना। कुछ लोगों को सूरज की रोशनी के प्रति त्वचा की संवेदनशीलता बढ़ सकती है, जिसके परिणामस्वरूप सनबर्न या जलन हो सकती है। धनिया कुछ दवाओं, विशेष रूप से रक्त पतला करने वाली दवाओं के साथ प्रतिक्रिया कर सकता है, जिससे संभावित रूप से जटिलताएं हो सकती हैं। खासकर अगर आपको एलर्जी है या आप दवा ले रहे हैं, तो धनिया का उपयोग सावधानी से करना महत्वपूर्ण है। अतः उपरोक्त शोध पत्रों एवं चिकित्सक के बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि यह दावा बिल्कुल गलत है।
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