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| - हल्दी का उपयोग आमतौर पर डिवॉर्मर के रूप में नहीं किया जाता है। सीमित वैज्ञानिक साक्ष्य एक कृमिनाशक एजेंट के रूप में इसकी प्रत्यक्ष प्रभावशीलता का समर्थन करते हैं। यह एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों वाला मसाला है, जो अपने पाक और पारंपरिक औषधीय उपयोगों के लिए जाना जाता है।
हल्दी का वैज्ञानिक नाम कर्क्यूमा है। ये चिकित्सीय गुणों के साथ सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाला औषधीय पौधा है। हल्दी का करक्यूमिन तत्व इसे अधिक उपयोगी बनाता है। करक्यूमिन में मुख्य रूप से एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीवायरल और एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं। यह लेख कृमि निवारण की प्रक्रिया और इसके महत्व को स्पष्ट करता है। इसके आलावा, हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि क्या हल्दी का उपयोग हल्दी कृमि निवारक के रूप में किया जा सकता है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार कृमि संक्रमण वैश्विक आबादी के एक तिहाई से अधिक लोगों को प्रभावित करता है। हालांकि, कृमि संक्रमण शिशु के सम्रग विकास कारकों अर्थात् स्वास्थ्य, पोषण, अनुभूति, सीखने और शिक्षा ग्रहण इत्यादि कों नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
कृमि-निवारण क्यों आवश्यक है?
डब्ल्यूएचओ (WHO) के अनुसार बच्चों को कृमि निवारण की आवश्यकता होती है क्योंकि वे अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली के विकास के कारण कृमि संक्रमण के आसानी से शिकार हो जाते हैं। यदि इसे लाइलाज छोड़ दिया जाए, तो ये संक्रमण उनके समस्त विकास में बाधा डाल सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें खराब पोषण भी हो सकता है। इसके अलावा, उनकी ध्यान केंद्रित करने और सीखने की क्षमता में भी कमी आ सकती है। कृमि निवारण उपचार प्रत्येक बच्चे में कृमियों की संख्या को कम करने का एक सरल, सुरक्षित और प्रभावी तरीका है। नियमित कृमि निवारण, स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के सुधार में योगदान देता है।
क्या हल्दी में कृमिनाशक गुण होते हैं?
2018 के एक अध्ययन में हल्दी, विशेष रूप से इसके सक्रिय यौगिक करक्यूमिन का, इसके संभावित कृमिनाशक गुणों के लिए अध्ययन किया गया है। शोध से स्पष्ट है कि करक्यूमिन का कुछ परजीवियों जैसे लीशमैनियासिस, एकैंथमोएबा कैस्टेलानी, एंटामोएबा हिस्टोलिटिका, ट्राइकोमोनास वजाइनालिस, इत्यादि के खिलाफ कृमिनाशक प्रभाव हो सकता है। हालांकि अभी भी हल्दी और करक्यूमिन के कृमिनाशक गुणों की जांच की जा रही है। हमें कृमि निवारण उपचार के संदर्भ में इसकी प्रभावकारिता, इष्टतम खुराक और संभावित दुष्प्रभावों को पूरी तरह से समझने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है।
फेसबुक के एक वीडियो पोस्ट में यह दावा किया जा रहा है कि मधुमेह की बीमारी को 4-5 महीने में हर्बल जड़ी-बुटियों द्वारा जड़ से ख़त्म किया जा सकता है। जब हमने इस पोस्ट की तथ्य जाँच की तब यह पाया कि यह दावा बिल्कुल गलत है।
दावा
फेसबुक पर जारी वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि मधुमेह यानी की शुगर की बीमारी को 4-5 महीने में हर्बल जड़ी-बुटियों से ठीक किया जा सकता है।
आहार और पोषण विशेषज्ञकाजल गुप्ता बताती हैं कि, “मधुमेह अग्न्याशय कोशिकाओं (pancreatic cells) की स्थायी क्षति के कारण या pancreatic cells के इंसुलिन के प्रति संवेदनशील होने के कारण होता है, इसलिए इसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन उचित दवा, आहार और जीवनशैली में बदलाव के माध्यम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।”
हालांकि, टाइप 2 मधुमेह को ‘रिवर्स’ या ‘इलाज’ करने के तरीके पर शोध किए जा रहे हैं, लेकिन अभी तक इस पर कोई निर्णायक स्थिति स्पष्ट नहीं है। वहीं, टाइप 1 मधुमेह वस्तुत: ऐसी स्थिति है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली इंसुलिन का उत्पादन करने वाली कोशिकाएं प्रभावित होती हैं, जिसे दुर्भाग्यवश कभी ठीक नहीं किया जा सकता है।
इसके अलावा, पोषण विशेषज्ञ डॉ. अवनि कौल ने भी उल्लेखित किया है कि मधुमेह को ठीक नहीं किया जा सकता है। इसे केवल आहार और जीवनशैली के द्वारा ही प्रबंधित और नियंत्रित किया जा सकता है।
क्या मधुमेह को किसी हर्बल जड़ी-बुटी से ठीक किया जा सकता है?
नहीं, मधुमेह को किसी भी हर्बल जड़ी-बुटी से ठीक करने के कोई विश्वसनीय वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, जो इसकी पुष्टि कर सके। हालांकि, स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम और कुछ जड़ी-बूटियां मधुमेह से ग्रसित लोगों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती हैं। ये मधुमेह का इलाज करने के तरीके नहीं है क्योंकि डॉक्टर मधुमेह के स्तर के अनुसार मधुमेह से पीड़ित लोगों को दवाईयां या परहेज करने की सलाह देते हैं, जो हर मरीज के लिए अलग-अलग हो सकती है।
डॉ. आयुष चंद्रा (Consultant Diabetologist and Founder of Nivaran Health, Delhi NCR) स्पष्ट करते हैं कि, “मधुमेह को ठीक नहीं किया जा सकता है। यदि आवश्यक हो, तो मधुमेह प्रबंधन में उचित दवाएं और इंसुलिन थेरेपी लेनी चाहिए, जिसके लिए डॉक्टर की सलाह अनिवार्य है। इसके लिए मैक्रो और सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ संतुलित आहार, दैनिक शारीरिक व्यायाम, पर्याप्त पानी पीना, मानसिक स्वास्थ्य और नियमित रक्त शर्करा की निगरानी की भी आवश्यकता होती है।
वे आगे बताते हैं कि वर्कआउट के साथ-साथ रोजाना 2-3 लीटर पानी का सेवन फायदेमंद होता है। यह चयापचय, रोग-प्रतिरक्षा, बीमारियों के रोकथाम और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। मधुमेह में पानी पीने से मूत्र के माध्यम से अतिरिक्त शर्करा को बाहर निकालने में मदद मिलती है।”
कंसल्टेंट फिजिशियन और डायबिटोलॉजिस्ट डॉ. उत्सव साहू बताते हैं, “नहीं, केवल हर्बल जड़ी-बूटियों का सेवन करने से मधुमेह ठीक नहीं हो सकती है। वास्तव में इस तरह के भोजन का सेवन करना खतरनाक हो सकता है क्योंकि यह शरीर को ठीक से काम करने के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान नहीं करेगा। मधुमेह से पीड़ित लोगों को हृदय रोग, स्ट्रोक, गुर्दे की समस्या और अंधापन जैसी गंभीर जटिलताओं से बचने के लिए अपने रक्त शर्करा के स्तर को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करने की आवश्यकता है। इसका अर्थ है कि स्वस्थ आहार का सेवन, नियमित रूप से व्यायाम करना और अपने चिकित्सक द्वारा बताई गई दवाएं लेना आवश्यक है। मधुमेह के प्रबंधन के लिए उपचार के साथ आहार और जीवनशैली में बदलाव भी करना चाहिए। इसके अलावा, चिकित्सा परिषद के मानदंडों के तहत वैज्ञानिक शोध और नैदानिक परीक्षणों के अनुसार अनुशंसित एलोपैथिक दवाएं भी शामिल होनी चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि मधुमेह एक जटिल स्थिति है, जो आनुवंशिकी, जीवनशैली और पर्यावरणीय कारकों सहित अन्य कारकों पर भी निर्भर करती है।”
इस वायरल दावे के बारे में दिल्ली स्थित सरोज डायबिटीज एंड रिसर्च सेंटर के संस्थापक और वरिष्ठ सलाहकार मधुमेह विशेषज्ञ डॉ. रितेश बंसल बताते हैं कि, “मधुमेह मेटाबॉलिज्म से संबंधित विकार है, जिसके लिए कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा की सही मात्रा के साथ संतुलित आहार की आवश्यकता होती है। अधिकांश मधुमेह रोगी लगातार वैकल्पिक चिकित्सा उपचारों की तलाश करते हैं, जो सहायक हो सकते हैं लेकिन सभी मधुमेह रोगियों को आहार, जीवनशैली में बदलाव और एलोपैथिक दवाओं के माध्यम से एक विशिष्ट रक्त शर्करा स्तर बनाए रखने की सलाह दी जाती है। इस दावे के संबंध में जड़ी-बूटियां और रस सहायक भूमिका निभाते हैं लेकिन कारगर हैं या नहीं, यह उस जड़ी-बुटी के बारे में विस्तृत जानकारी के बाद ही पता चलेगा। किसी भी तरह के प्राकृतिक उपचारों का उपयोग करते समय रोगी पर कड़ी निगरानी रखने की आवश्यकता होती है और उसे अपने डॉक्टरों द्वारा सुझाए गए चिकित्सा उपचार का पालन करना चाहिए।”
अतः शोध पत्रों और चिकित्सक के बयान से यह स्पष्ट है कि मधुमेह का कोई इलाज नहीं है। मधुमेह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रण में रखने के लिए निरंतर प्रबंधन और उपचार की आवश्यकता होती है। इसके अलावा यह साबित करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण भी नहीं है कि केवल हर्बल पेय या किसी जड़ी-बुटी का सेवन करने से मधुमेह पूरी तरह से ठीक हो सकता है। इसके अलावा इस वीडियो में इस्तेमाल की जा रही जड़ी-बुटी की अधूरी जानकारी दी गई है। ऐसे में, इस वीडियो पर विश्वास नहीं किया जा सकता। हमने पहले भी मधुमेह संबंधित दावों की जांच की है, जैसे- पूजा करने से मधुमेह को ठीक किया जा सकता है और कुछ लोकप्रिय व्यक्तियों द्वारा मधुमेह की दवाई का प्रचार किया गया है.
फेसबुक पर जारी एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि रात के वक्त दही नहीं खाना चाहिए। इस पोस्ट को दही खाने का सही समय और तरीका के अंतर्गत जारी किया गया है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा ज्यादातर गलत है।
UCLA के अनुसार बिना मिठास वाला दही मस्तिष्क के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दही में Zinc, Choline और Iodine प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। Iodine मस्तिष्क और neurological विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि Iodine Thyroid Hormone बनाने में मदद करता है। Iodine की थोड़ी भी कमी मस्तिष्क विकास जैसे- बौद्धिक एवं तार्किक शक्ति को प्रभावित करती है।
दही प्रोबायोटिक्स से भरपूर होता है। ये जीवित बैक्टीरिया होते हैं, जो आपके पेट के स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाते हैं। प्रोबायोटिक्स बेहतर पाचन और पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ावा देकर आंतों के स्वस्थ संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं। वे कब्ज, दस्त और Irritable Bowel Syndrome जैसी समस्याओं में भी मदद कर सकते हैं। प्रोबायोटिक्स संभावित रूप से शरीर को हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने में मदद कर सकते हैं।
दही कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन डी का एक अच्छा स्रोत है, जो हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। कैल्शियम का सेवन ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डी के फ्रैक्चर को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
रात के वक्त दही के सेवन को लेकर कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं, जो बताते हो कि किसी निश्चित समय पर दही खाने से किसी तरह के नुकसान होते हैं या नहीं। हालांकि यह लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति पर निर्भर करता है कि उनकी शारीरिक संरचना कैसी है।
आहार विशेषज्ञ नबरुणा गांगुली बताती हैं, “दही का सेवन करना शरीर को पौष्टिक तत्व प्रदान करता है। दही में मौजूद पोषक तत्व यानी प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, पोटेशियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम स्वस्थ जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्कृष्ट स्रोत हैं। दही एक प्रोबायोटिक भोजन है, जो अच्छे बैक्टीरिया द्वारा बेहतर पाचन के साथ-साथ मल त्याग को आसान बनाते हैं, यानी कब्ज की स्थिति को कम करते हैं। वहीं इसमें मौजूद कैल्शियम बेहतर अवशोषण में मददगार साबित होते हैं, जो हड्डियों को स्वास्थ्य बनाए रख सकते हैं। इनमें मौजूद अन्य कारक यानी सोडियम और पोटेशियम सामान्य स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। साथ ही इस बात का कोई व्यावहारिक प्रमाण नहीं है कि दही का रात के वक्त सेवन करने से कोई स्वास्थ्य समस्या होती है।”
उन्होंने आगे बताया, “दही की तासीर ठंडी होती है इसलिए कभी-कभी ठंड के मौसम में पाचन प्रक्रिया में बाधा डाल सकते हैं, लेकिन जिन लोगों का पाचन तंत्र अच्छा होता है, उन्हें इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है। वहीं रात के समय दही अपच का कारण बन सकता है लेकिन यह हर किसी के लिए सच नहीं है। वहीं अस्थमा, सर्दी से एलर्जी और COPD के रोगियों को ठंड के मौसम और रात के समय दही से परहेज करने की सलाह दी जाती है क्योंकि इससे शरीर का तापमान कम हो जाता है और उनमें बलगम का निर्माण बढ़ सकता है।”
अतः उपरोक्त शोध पत्रों एवं चिकित्सक के बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि यह दावा ज्यादातर गलत है क्योंकि भले ही रात के वक्त दही का सेवन करने से अपच की समस्या होती है लेकिन यह हर किसी के लिए एक समान नहीं है।
क्या पोषण के लिए समग्र दृष्टिकोण चिंता और अनिद्रा में सकारात्मक रूप से मदद कर सकते हैं?
हां, पोषण के लिए समग्र दृष्टिकोण मानसिक कल्याण को बहुत प्रभावित कर सकते हैं। संपूर्ण, पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों का चयन करना, ओमेगा-3 फैटी एसिड, विटामिन और खनिजों से भरपूर संतुलित आहार को बढ़ावा देना, मस्तिष्क के स्वास्थ्य का समर्थन करता है। इसके अतिरिक्त, सचेत भोजन, व्यक्तिगत आहार आवश्यकताओं को पूरा करना, और आंत-मस्तिष्क संबंध पर विचार करना मानसिक कल्याण पर समग्र सकारात्मक प्रभाव में योगदान देता है।
अच्छे स्वास्थ्य के लिए अनिद्रा और चिंता से बचना आवश्यक है। इस हेतु उचित खाद्य पदार्थ के चयन के महत्व को कम नहीं किया जा सकता है। हमारे मानसिक और भावनात्मक संतुलन के दो बुनियादी पहलू हैं जो हमारे खाने की पसंद को प्रभावित करते हैं। अत: क्या खाना है, यह जानने से पहले जरूरी है कि चिंता और अनिंद्रा के कारण को समझा जाये?
चिंता और अनिद्रा के कारण क्या हो सकते हैं?
चिंताऔर अनिद्रा के कारण अक्सर एक-दूसरे से संबंधित होते हैं। काम का दबाव, व्यक्तिगत समस्याएं या वित्तीय चिंता, इत्यादि इन समस्याओं के कारण हो सकते हैं। यह स्थिति नींद के पैटर्न को बाधित करती है, जो अनिद्रा का कारण बनता है। सामान्य चिंता विकार या अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी चिंता और विकार के कारण हो सकते हैं। अत्यधिक कैफीन का सेवन या अनियमित नींद का समय जैसे जीवनशैली के विभिन्न कारक भी इन विकारों में वृद्धि कर सकते हैं। इसके अलावा, चिकित्सा की स्थिति और दवाइयां भी इनके कारण हो सकते हैं।
कौन से खाद्य पदार्थ चिंता और अनिद्रा में वृद्धि कर सकते है?
अनुचित खाद्य पदार्थ, अनिद्रा और चिंता का कारण बन सकता है। जबकि अपने भोजन में नींद को बढ़ावा देने वाले और चिंता से राहत देने वाले खाद्य पदार्थ को शामिल करना आवश्यक है। कुछ खाद्य पदार्थों के प्रति सचेत रहने की भी सलाह दी जाती है, जो अनिद्रा और चिंता को बढ़ाते हैं। यहां ऐसे खाद्य पदार्थ की सूची है, जिनका परहेज़ करना चाहिए:-
कैफीन
कैफीन से भरपूर खाद्य पदार्थ निद्रा चक्र को बाधित कर चिंता को बढ़ा सकते हैं। इसलिए रात में कॉफी, चाय, ऊर्जा पेय और कैफीनयुक्त पेय पदार्थों का सेवन सीमित मात्रा में करना चाहिए।
चीनी और परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट
चीनी और परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट से युक्त उच्च खाद्य पदार्थ रक्त शर्करा के स्तर में उतार-चढ़ाव और चिंता का कारण बन सकते हैं। इसलिए साबुत अनाज और जटिल कार्बोहाइड्रेट का सेवन करना चाहिए।
शराब
शुरुआती दौर में शराब पीने से नींद में मदद मिल सकती है, लेकिन कुछ समय बाद यह निद्रा चक्र को बाधित कर देती है, जिससे अधूरी नींद या बेचैनी हो सकती है। इसलिए रात में शराब के सीमित सेवन की सलाह दी जाती है।
मसालेदार और भारी खाद्य पदार्थ
मसालेदार या भारी और चिकना खाद्य पदार्थ अपचन और असुविधा का कारण बन सकता है, जिससे चैन से सोना मुश्किल हो सकता है। रात में हल्का भोजन ही करना चाहिए।
अत्यधिक प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ
प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ योजकों और संरक्षकों से भरपूर होते हैं। ये व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। बेहतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को चुनें।
अत्यधिक नमक
खाद्य पदार्थ में सोडियम का उच्च स्तर रक्तचाप और नींद में अनियमितता पैदा कर सकता है। इसलिए, नमक का सेवन कम करने की सलाह दी जाती है।
कृत्रिम मिठास
कुछ लोग कृत्रिम मिठास के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं क्योंकि इसका सेवन परिवर्तित आंत माइक्रोबायोटा से जुड़ा हुआ है, जो मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिए, प्राकृतिक मिठास का सेवन करना चाहिए।
कौन सी कमियां अनिद्रा का कारण बनती हैं?
कई पोषक तत्वों की कमी से अनिद्रा हो सकती है। नींद से जुड़ा एक प्रमुख खनिज मैग्नीशियम है। अपर्याप्त मैग्नीशियम का स्तर निद्रा चक्र को बाधित कर सकता है, जिसके कारण अनिद्रा की समस्या हो सकती है। मैग्नीशियम नींद में शामिल मेलाटोनिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर के विनियमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
किस विटामिन की कमी से अनिद्रा होती है?
विटामिन की कमी, विशेष रूप से विटामिन बी की कमी, अनिद्रा में योगदान कर सकती है। विटामिन बी-6 और बी12 न्यूरोट्रांसमीटर के संश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिसमें सेरोटोनिन और मेलाटोनिन शामिल हैं, जो निद्रा चक्र को नियंत्रित करने में शामिल हैं। इन विटामिनों के अपर्याप्त स्तर न्यूरोट्रांसमीटरों के उत्पादन को बाधित कर सकते हैं। इससे अच्छी तरह से नींद नहीं आती है। संभवत: संतुलित आहार या पूरक आहार के माध्यम से बी विटामिन प्राप्त करना महत्वपूर्ण है।
अनिद्रा और चिंता के लिए कौन से खाद्य पदार्थ अच्छे हैं?
हालांकि, केवल डाइट से अनिद्रा और चिंता का इलाज संभव नहीं है, लेकिन ऐसे कुछ खाद्य पदार्थ हैं, जो बेहतर नींद में भी सहायक हो सकते हैं। ध्यान दें कि खाद्य पदार्थों के प्रति व्यक्तिगत प्रतिक्रियाएँ भिन्न हो सकती हैं, इसलिए यह जानना आवश्यक है कि आपका शरीर कैसे प्रतिक्रिया करता है। यहां कुछ खाद्य पदार्थ दिए गए हैं, जिनसे अच्छी नींद आ सकती हैंः
अनिद्रा से बचनेके लिए खाद्य पदार्थ
भरपूर नींद समग्र कल्याण के लिए आवश्यक है, जिनमें खान-पान की पंसद अच्छी नींद में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। अच्छी नींद आने के लिए भोजन को ट्रिप्टोफैन, मैग्नीशियम और मेलाटोनिन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होना चाहिए। इनसे शरीर को आराम और निद्रा चक्र को सही करने में सहायता मिलती है। अनिद्रा प्रबंधन के लिए संतुलित आहार को अपनाना आवश्यक है। इनमें हल्दी के साथ गर्म दूध से लेकर साबुत अनाज और मेवों का सेवन किया जाना सम्मिलित है।
चिंता से राहत के लिए भोजन
चिंता आधुनिक जीवन का एक सामान्य पहलू है, जिन्हें आहार समेत अनेक कारक प्रभावित कर सकते हैं। कुछ खाद्य पदार्थों में ऐसे गुण हो सकते हैं, जो चिंता को कम करने में सहायता कर सकते हैं। इसमें कार्बोहाइड्रेट, ओमेगा-3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर आहार फायदेमंद हो सकता है। हमें मानसिक स्वास्थ्य के अनुकूल आहार करना चाहिए। परिणामस्वरूप केवल आहार परिवर्तन ही नहीं अपितु उचित मार्गदर्शन अपेक्षित है।
कैफीन और निकोटीन जैसे उत्तेजक पदार्थों के सेवन को सोने के समय करने से बचना या सीमित करना आवश्यक है, क्योंकि वे अनिद्रा का कारण बन सकते हैं। इसके अतिरिक्त, शराब के सेवन से रात में देर से नींद आने की समस्या हो सकती है।
अनिद्रा और चिंता के लिए नमूना आहार
खाना
भोजन के विकल्प
नाश्ता
– बादाम, अखरोट और चिया बीज के साथ दलिया।
– प्राकृतिक मिठास के लिए कटे हुए केले।
– कैमोमाइल या तुलसी चाय।
मध्य-सुबह का नाश्ता
– मिश्रित जामुन के साथ ग्रीक दही।
दिन का खाना
– क्विनोआ या ब्राउन चावल के साथ ग्रील्ड या बेक्ड सैल्मन।
– पालक, ब्रोकोली और शिमला मिर्च जैसी मिश्रित सब्जियां।
दोपहर का नाश्ता
– मुट्ठी भर मिश्रित मेवे (बादाम, काजू)।
रात का खाना
– भूरे चावल या साबुत गेहूं की रोटी के साथ मसूर दाल।
– हल्की पकी हुई सब्जियां (तोरी, गाजर)।
सोने से पहले
– गर्म दूध में चुटकी भर हल्दी मिलाएं।
– हर्बल आसव (लैवेंडर या पुदीने की चाय)।
सेहत के लिए अच्छी नींद लेना बहुत ज़रूरी है। मेलाटोनिन और सेरोटोनिन जैसे नींद को नियंत्रित करने वाले हार्मोन से युक्त कुछ खाद्य पदार्थ और पेय नींद की गुणवत्ता में सुधार करते हैं। एंटीऑक्सीडेंट और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों से जल्दी और लंबी नींद आती है।
इनका सेवन सोने से 2-3 घंटे पहले ही करें ताकि एसिड रिफ्लक्स जैसी पाचन समस्या न हो। हालांकि सोन पर भोजन और पेय पदार्थ के सटीक प्रभाव की पुष्टि हेतु और अध्ययन की आवश्यकता है। वर्तमान में डाइटरी चॉइस को महत्वपूर्ण माना जाता है।
वहीं टाइप 2 में पेनक्रियाज पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का निर्माण नहीं कर पाती या इंसुलिन का सही मात्रा में उपयोग नहीं कर पाती। सही मात्रा में इंसुलिन का उपयोग ना हो पाने से वे रक्त कोशिकाओं में ही रह जाते हैं और शरीर की जरुरते पूरी नहीं हो पाती हैं। साथ ही उच्च मधुमेह का स्तर नसों, रक्त वाहिकाओं और अन्य अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। इससे हृदय, स्ट्रोक, किडनी संबंधित और अंधापन जैसी गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएं हो सकती हैं।
टाइप 1 मधुमेह के लक्षण कुछ ही हफ्तों में तेजी से शुरू हो सकते हैं। टाइप 2 मधुमेह के लक्षण अक्सर धीरे-धीरे विकसित होते हैं। ये कई वर्षों के दौरा, इतने हल्के हो सकते हैं कि आप उन्हें नोटिस भी नहीं कर सकते हैं। टाइप 2 मधुमेह वाले कई लोगों में कोई लक्षण नहीं होते हैं। कुछ लोगों को तब तक पता नहीं चलता कि उन्हें यह बीमारी है, जब तक कि उन्हें मधुमेह से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं, जैसे धुंधली दृष्टि या हृदय की परेशानी न हो।
कुछ हार्मोनल बीमारियां शरीर में कुछ हार्मोनों का बहुत अधिक उत्पादन करने का कारण बनती हैं, जो कभी-कभी इंसुलिन प्रतिरोध और मधुमेह का कारण बनती हैं।
Cushing’s syndrome तब होता है, जब शरीर बहुत अधिक कोर्टिसोल का उत्पादन करता है, जिसे अक्सर “stress hormone” कहा जाता है।
Acromegaly तब होती है, जब शरीर बहुत अधिक वृद्धि हार्मोन (growth hormone) का उत्पादन करता है। इस हार्मोन का उच्च स्तर शरीर में रक्त ग्लूकोज (रक्त शर्करा) और लिपिड (वसा) को संसाधित करने के तरीके में भी बदलाव का कारण बनता है, जिससे टाइप 2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग हो सकता है।
पटना स्थित डायबिटीज एंड ओबिसिटी केयर सेंटर के संस्थापक डायबेटोलोजिस्ट डॉ. सुभाष कुमार बताते हैं कि, “मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है। सोशल मीडिया पर ऐसे कई भ्रामक दावे जारी होते रहते हैं लेकिन मरीज को अपने अनुसार चिकित्सक से परामर्श लेकर ही दवाओं आदि का सेवन करना चाहिए। इस तरह के दावों से दूर रहे क्योंकि ये मधुमेह को ठीक नहीं करते बल्कि स्थिति को गंभीर बना सकते हैं।”
शोध बताते हैं कि आयुर्वेद में नाभि की अवधारणा अनेक रुप में मौजूद है लेकिन इस ओर अभी और अन्वेषण एवं गहन अध्ययन की आवश्यकता है। आयुर्वेदिक चिकित्सका पद्धति में इसे Koshthanga, Marma, Sira और Dhamani Prabhava Sthana के तौर पर जाना जाता है। नाभि महत्वपूर्ण संरचनात्मक स्थलों में से एक है, जिसका उपयोग चिकित्सकों द्वारा सदियों से निदान और उपचार दोनों का मार्गदर्शन करने के लिए किया जाता है।
साथ ही आयुर्वेद के अनुसार नाभि अग्नि का स्थान है। यह पाचन, पेशाब और गठन प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है इसलिए नाभि से जुड़ी चिकित्सीय पद्धति इन शारीरिक कार्यों को विनियमित करने में मदद कर सकती है। हालांकि नाभि द्वारा किसी बीमारी का इलाज करने को लेकर अभी और शोध की आवश्यकता है, जो गंभीर एवं लाइलाज बीमारी को ठीक करे या नियंत्रित करे।
डॉ. पी. राममनोहर, शोध निदेशक, अमृता स्कूल ऑफ आयुर्वेद, बताते हैं कि नाभि में तेल डालने या किसी विशेष प्रकार के तेल का नाभि के आसपास मालिश करने से बीमारियोंके ठीक होने में कोई सम्बन्ध नहीं है और न ही शास्त्रीय आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका कोई उल्लेख मिलता है। साथ ही नाभि में तेल के इस्तेमाल एवं मधुमेह के इलाज या उसके नियंत्रण को लेकर कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
क्या इस बात का वैज्ञानिक प्रमाण है कि नाभि में तेल डालने से हृदय, मधुमेह या यकृत रोग से बचाव होता है?
लेकिन जब हमने मालिश के बारे में शोध किया तो हमें पता चला कि मालिश करने की चिकित्सीय पद्धति से चिंता, अवसाद और पुराने दर्द जैसे लक्षणों को कम करके उच्च रक्तचाप के रोगियों को लाभ मिलता है। अध्ययनों से रक्तचाप और कोर्टिसोल के स्तर में कमी का संकेत भी मिलता है। हालांकि शोध की गुणवत्ता भिन्न होती है क्योंकि विभिन्न तरीकों से मालिश करने से मिश्रित परिणाम मिलते हैं।
मालिश के साथ अरोमा (aroma) जैसी चिकित्सा पद्धति जोड़ने से प्रभावशीलता बढ़ सकती है लेकिन व्यायाम जैसी प्रभावशीलता नहीं आ सकती। इसके अतिरिक्त, अनुसंधान में अभी और गहन शोध की आवश्यकता प्रतीत होती है, जो नाभि में तेल डालने और बीमारियों के प्रति ज्यादा सटीक जानकारी प्रदान कर सके।
साल 2001 में जारी एक अध्ययन के मुताबिक मधुमेह से ग्रसित बच्चों के पूरे शरीर की मालिश करने से ग्लूकोज के स्तर में कमी दर्ज हुई, जिससे माता-पिता और बच्चों दोनों में चिंता और अवसाद में कमी देखी गई। हालांकि परिणामों को मापने के तरीकों का उल्लेख नहीं किया गया था।
वहीं एक अन्य अध्ययन में क्लिनिकल स्टाफ ने मधुमेह के रोगियों को सांस लेने के निर्देश और हल्के स्पर्श दिए, जिसके परिणामस्वरूप रक्त शर्करा, चिंता, सिर दर्द, अवसाद, काम का तनाव और गुस्सा कम हुआ। साथ ही बेहतर नींद आई और पारिवारिक रिश्तों में सुधार हुआ। यहां भी किसी सांख्यिकीय महत्व का मूल्यांकन नहीं किया गया था और परिणाम माप के तरीके निर्दिष्ट नहीं किए गए थे।
एक अप्रकाशित परीक्षण में टाइप 2 मधुमेह वाले मरीज़, जिन्होंने 12 सप्ताह तक सप्ताह में तीन बार पूरे शरीर की मालिश की, उन्हें HbA1C के स्तर में विभिन्न बदलावों का अनुभव हुआ। वहीं कुछ रोगियों में कमी देखी गई, जबकि अन्य में वृद्धि देखी गई। साथ ही रोगी की विशेषताओं में अंतर भी देखा गया। प्रतीक्षा सूची के मरीजों में भी HbA1c के स्तर में गिरावट देखी गई।
इन दोनों अध्ययनों में विभिन्न शारीरिक त्रुटियों के कारण परिणाम सटीक नहीं थे और प्रतिभागियों के बीच परिणाम भी अलग-अलग थे। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभावशीलता प्राप्त मालिश के प्रकार और उपयोग किए गए तेल के प्रकार पर भी निर्भर करती है। दोनों अध्ययनों ने अपने शोध में नाभि मालिश का उल्लेख नहीं किया है।
क्या सभी तरह के रोग ठीक हो सकते हैं?
नहीं। देखा जाए, तो वर्तमान समय में ऐसे कई रोग हैं, जो ठीक नहीं किए जा सकते। जैसे- कैंसर, मधुमेह, एचआईवी एड्स, इत्यादि। कैंसर स्पष्ट रूप से सबसे घातक बीमारी है क्योंकि तीन में से एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल के दौरान कैंसर होता है। शोध के अनुसार Oesophageal cancer सबसे घातक कैंसरों में से एक है और इसका इलाज करना मुश्किल है। साथ ही इस कैंसर का जल्दी पता लगाना बहुत मुश्किल है क्योंकि इस कैंसर के शुरुआती चरण में छोटे ट्यूमर अक्सर कम या कोई लक्षण उत्पन्न ही नहीं करते हैं, लेकिन अगर पता न चले तो Oesophageal cancer पेट, फेफड़े, लीवर और लिम्फ नोड्स सहित शरीर के विभिन्न हिस्सों में फैल सकता है। अंतिम मेटास्टेसिस चरण में ट्यूमर लाइलाज होता है और अंतिम चरण के अधिकांश उपचार केवल जीवन को बढ़ाने और लक्षणों से राहत देने पर केंद्रित होते हैं। Oesophageal को आम बोलचाल की भाषा में भोजन नली भी कहा जाता है, जो मुंह से शुरू होकर पेट तक जाती है।
क्या नाभि में तेल डालने की विधि कारगर है?
पेचोटी विधि (Pechoti method) में स्वास्थ्य कारणों से नाभि पर तेल या पदार्थ डालना शामिल है लेकिन इसका कोई पुख्ता वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। कुछ लोगों को अपनी मान्यताओं और अनुभवों के आधार पर यह मददगार लग सकता है, लेकिन वैज्ञानिक तौर पर इसे व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया गया है इसलिए इसके प्रभावों के बारे में जानने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।
इसके अलावा हमारे शोध के दौरान हमें ऐसा कोई शोध पत्र नहीं मिला, जिसमें विशेष रूप से ‘पेचोटी विधि’ शब्द का उल्लेख हो। जबकि अभ्यास करने वाले कुछ लोग लाभ का सुझाव देते हैं, लेकिन खोजे जाने पर उनके पास वैज्ञानिक मान्यता का अभाव होता है। ऐसे में इन स्वास्थ्य स्थितियों के प्रबंधन के लिए स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों द्वारा अनुशंसित साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण पर भरोसा करना महत्वपूर्ण है।
हां, क्योंकि जिस प्रकार सभी तरह के बीमारियों को ठीक करने का दावा किया जा रहा है, यह बिल्कुल मिथ्या है। जैसा कि हमने उल्लेख किया है कि नाभि सूत्र चिकित्सीय पद्धति सभी तरह की बीमारियों का इलाज नहीं कर सकती। इसके अलावा इस वीडियो के अंत में जो वेबसाइट (herbal.oil) लिंक संलग्न की गई, उसमें AYURVEDIC SHRI RAMBAN MULTI-BENEFIT NABHI OIL के नाम से तेल को बेचा जा रहा है और एक पर एक मुफ्त का ऑफर चलाया जा रहा है। इस तेल का नाम श्री राम कृपा नाभि तेलम बताया जा रहा है, लेकिन इसमें कही भी तेल में मौजूद सामग्री की जानकारी नहीं दी गई। साथ ही इस वेबसाइट पर कुछ स्क्रिनशॉट संलग्न है, जिससे इस तेल की उपयोगिता सिद्ध नहीं होती है।
अतः उपरोक्त शोध पत्रों एवं चिकित्सक के बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि यह दावा बिल्कुल गलत है कि नाभि में तेल डालने से सभी तरह की बीमारियां ठीक हो जाएंगी और दवा खाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। बेहतर है कि इस तरह के दावों पर भरोसा करने से पहले आप अपने चिकित्सक से संपर्क करें क्योंकि वो ही लक्षणों को समझते हुए सही उपचार बता सकते हैं।
क्रोध एक ऐसी स्वाभाविक भावना है, जो व्यक्ति के भावनात्मक संतुलन को बिगाड़ देती है। साथ ही यह मनुष्य के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। जैसा कि हाल ही में एनिमल फिल्म में देखा गया है, क्रोध आपके स्वस्थ और खुशहाल जीवन को पूरी तरह खराब कर देता है। क्रोध के विकारों और व्यक्ति के समग्र कल्याण के बीच जटिल संबंधों को पहचानना एक स्वस्थ और संतुलित जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
क्रोध के मनोवैज्ञानिक विकार
मानसिक रूप से, अत्यधिक क्रोध भावनात्मक विकास को बाधित करता है, जो तनाव, चिंता और अवसाद से भी संबंधित है। अनियंत्रित क्रोध व्यक्ति के भावनात्मक लचीलेपन और आत्मसम्मान को प्रभावित करता है। इसके अलावा, अत्यधिक क्रोध कई सारे मनोवैज्ञानिक विकारों का कारण बनता है, जो भावनात्मक सुधार के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
इसके अलावा, अत्यधिक क्रोध के अनियंत्रित पहलू धीरे-धीरे किसी व्यक्ति के मूल्य की भावना को कम कर देता है। गुस्से से संबंधित व्यवहार, व्यक्ति में खराब आत्म-छवि और अयोग्यता या अपर्याप्तता की भावना को जन्म देता है। इसके भावनात्मक प्रभाव के साथ-साथ व्यक्ति के आत्म-मूल्य में आई इस गिरावट के कारण किसी भी व्यक्ति के लिए एक स्थिर और स्वस्थ मानसिक स्थिति को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।
शारीरिक समस्याओं का मूल कारण
शारीरिक रूप से, अत्यधिक क्रोध ऐसी विभिन्न शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देता है, जो बाद में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का रूप ले लेती हैं। इससे उच्च रक्तचाप समेत हृदय संबंधी समस्याओं, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली इत्यादि संबंधित है। क्रोध को एक क्षणिक भावना से अधिक के रूप में पहचानना महत्वपूर्ण है; यह विभिन्न शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारक के रूप में कार्य करता है, जो इन पर तुरंत ध्यान देने का संकेत भी देता है।
अंत में, जब क्रोध को लाइलाज छोड़ दिया जाता है, तब यह किसी भी व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। एनिमल फिल्म क्रोध के इस पहलू को अच्छी तरह से दर्शाती है। व्यक्ति के लिए, क्रोध के बहुआयामी प्रभाव को स्वीकार करना और एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना स्वस्थ जीवन के प्रति प्रतिबद्धता है। गुस्सा के प्रबंधन की दिशा में सक्रिय कदम उठाना मुख्यत: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखना है।
क्या वीडियो में दिखाए गए व्यक्ति पर भरोसा किया जा सकता है?
नहीं। आपको बता दें कि वीडियो में जो शख्स मौजूद है, उसके खिलाफ कोरोना काल के दौरान एक याचिका दायर की गई थी, जिसे change.org पर जारी किया गया था। बिस्वरूप रॉय चौधरी एक स्व-घोषित डॉक्टर है, जो अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से महामारी की शुरुआत के बाद से लगातार जनता को COVID -19 के बारे में यह कहते हुए गुमराह कर रहा था कि यह मौसमी फ्लू के अलावा कुछ नहीं है। साथ ही उन्होंने भारत सरकार द्वारा सामाजिक दूरी बनाए रखने की अपील को भी एक अनावश्यक कदम बताया था।
हालांकि कोरोना काल के दौरान कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने वैक्सीन संबंधी गलत सूचनाओं को दूर करने के लिए अनेक कदम उठाए परन्तु फिर भी डॉ. चौधरी द्वारा फैलाई जा रही गलत सूचनाओं का दायरा बढ़ता जा रहा है। हाल ही में उन्होंने इंसुलिन द्वारा शरीर के रक्त शर्करा स्तर बढ़ने का दावा अपने फेसबुक अकाउंट Dr. BRC Shorts से साझा किया है।
इंसुलिन क्या है?
इंसुलिन अग्न्याशय (pancreas) द्वारा निर्मित एक महत्वपूर्ण हार्मोन है। इंसुलिन द्वारा ही पाचन क्रिया और रक्त शर्करा को नियंत्रित किया जाता है ताकि मेटाबोलिज्म की प्रक्रिया सही ढ़ंग से हो सके।
रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने के अतिरिक्त इंसुलिन शरीर के अंदर वसा को सहेजने का काम भी करता है ताकि जरूरत पड़ने पर शरीर इस वसा का उपयोग कर सके।
क्या इंसुलिन थेरेपी रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है?
यकृत रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साथ ही शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। यकृत में मौजूद हेपेटिक इंसुलिन क्लीयरेंस और मेटाबॉलिज्म का समायोजन का उद्देश्य रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करना है।
एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि करेला और जामुन पाउडर का सेवन करने से मधुमेह को प्राकृतिक रुप से नियंत्रित किया जा सकता है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा आधा सत्य है।
यहाँ यह बताना आवश्यक है कि हम दावे की जांच कर रहे हैं न कि उत्पाद की।
तथ्य जाँच
क्या करेला में मधुमेह को नियंत्रित करने के गुण होते हैं?
शोध बताते हैं कि बायोएक्टिव यौगिकों की उपस्थिति के कारण करेला मधुमेह पर प्रभाव डालता है। ऐसा करेले में मौजूद चारैन्टिन, विसीन और पॉलीपेप्टाइड-पी के संभावित एंटीडायबिटिक प्रभावों के कारण होता है। ये यौगिक इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार और आंतों में ग्लूकोज अवशोषण को कम करके रक्त शर्करा के स्तर को विनियमित करने में मदद कर सकते हैं। हालांकि मधुमेह के प्रबंधन में इन यौगिकों के प्रभावशीलता को पूरी तरह से समझने के लिए और शोध की आवश्यकता है। यहाँ यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि करेला को मधुमेह के चिकित्सीय उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।
ऐसे में केवल करेला और जामुन पर निर्भर रहना स्थिति को गंभीर बना सकता है। भले ही मधुमेह को नियंत्रित करने में ये उपयोगी हो लेकिन मरीज की आनुवांशिक स्थिति, दिनचर्या, अन्य दवाईयों का सेवन, धुम्रपान, शराब आदि का सेवन भी मधुमेह पर प्रभाव डाल सकता है। इसके अलावा मधुमेह को नियंत्रित रखने के लिए नियमित जाँच की भी आवश्कता होती है।
पटना स्थित डायबिटीज एंड ओबिसिटी केयर सेंटर के संस्थापक एवं डायबेटोलोजिस्ट डॉ. सुभाष कुमार बताते हैं, “मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन इसे संपूर्ण तौर पर समाप्त नहीं किया जा सकता। मधुमेह को नियंत्रित रखने के लिए जरुरी है कि मीठे चीजों से परहेज किया जाए और नियमित तौर पर अपने रक्त शर्करा की जाँच की जाए। हालांकि करेला, जामुन या जामुन के बीज मधुमेह रोगियों के लिए हानिकारक नहीं है लेकिन केवल इन पर निर्भर रहना कहीं से भी सही नहीं है। मधुमेह नियंत्रण के लिए कोई एक मानक नहीं है बल्कि अनेक मानक हैं। जैसे- प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन ना करना, मीठा से परहेज करना, नियमित शारीरिक गतिविधि करना, वजन को नियंत्रित करना, नियमित तौर पर अपने चिकित्सक से परामर्श लेना, इत्यादि।”
हां। शोध बताते हैं कि त्वचा कैंसर एक असामान्य घातक बीमारी है, जो भारत में होने वाले सभी कैंसरों में से 1% से भी कम है। ड्रॉस्ट्रिंग डर्मेटाइटिस (Drawstring dermatitis) एक प्रकार का घर्षणात्मक डर्मेटाइटिस है, जो ‘साड़ी’ और ‘सलवार-कमीज़’ जैसे पारंपरिक कसकर पहने जाने वाले कपड़ों से हो सकता है।
कमर पर लगातार बना रहने वाला घर्षण lichenified grooves, सूजन, त्वचा की रंगत में फीकापन या सफेद दाग यानी कि विटिलिगो या lichen planus जैसी पहले से मौजूद त्वचा रोगों को बढ़ा सकता है। पुरानी घर्षण, पसीने और उष्णकटिबंधीय वातावरण की नमी के साथ मिलकर कैंडिडा, डर्माटोफाइट्स और बैक्टीरिया के संक्रमण का कारण बनता है। हालांकि दुर्लभ मामलों में स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (Squamous Cell Carcinoma) की सूचना मिली है। इस स्थिति की रोकथाम वजन कम करने और कमरबंद की डोरी को ढीला बांधने से हो सकती है।
क्या हाल ही में साड़ी कैंसर के मरीजों में बढ़ोतरी हुई है?
नहीं। जैसा ऊपर बताया जा चुका है कि साड़ी कैंसर भारत में होने वाले सभी कैंसरों में से 1% से भी कम है। साथ ही, साड़ी कैंसर और अपघर्षक कपड़ों से होने वाली त्वचा की अन्य विकृतियों को आसानी से रोका जा सकता है। यहाँ उल्लेखनीय है कि यह स्वास्थ्य दशा किसी विशेष परिधान जैसे साड़ी के लिए विशिष्ट नहीं है। यह अन्य तंग कपड़ों जैसे जीन्स, अंडरगारमेंट्स के लिए भी लागू होता है।
क्या सभी महिलाओं को साड़ी पहनने से कैंसर का खतरा हो सकता है?
नहीं। अध्ययन बताते हैं कि साड़ी कैंसर का मामला एक 68 वर्षीय महिला में मिला था, जिन्हें कमर के बायीं ओर एक गांठ (ulceroproliferative growth) थी। बायोप्सी (biopsy) में यह गांठ स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (SCC) के रूप में पाई गई। इसका इलाज सर्जरी द्वारा किया गया, जिसमें गांठ को व्यापक रूप से काटकर निकाल दिया गया (wide excision) और फिर घाव को बंद कर दिया गया (primary closure)।
डॉ. सार्थक मोहर्रिर (Radiation oncologist, Apollo Hospital, Bilaspur) बताते हैं कि, “भारतीय महिलाओं में साड़ी कैंसर अभी एक दुर्लभ कैंसर है। देखा जाए तो महिलाएं जो साड़ी या पेटीकोट पहनती हैं, वो लंबे समय तक कमर में कसा होता है। यही कारण है कि वहां की त्वचा में घर्षण होने लगता है। गर्मी के दिनों में ये समस्या बढ़ जाती है। इसके अलावा साड़ी कैंसर के अन्य कारक में निजी साफ सफाई भी है क्योंकि कई बार लंबे वक्त तक पसीना आने के कारण आसपास के धूल कण भी साड़ी में रह जाते हैं, जिससे सूजन होने की संभावना बढ़ जाती है। यही सूजन बाद में कैंसर का रूप ले लेता है।
साड़ी कैंसर से बचने का एकमात्र उपाय है कि कमर में एक ही जगह बार बार साड़ी या पेटीकोट को कस कर न बांधा जाये और साफ सफाई पर ध्यान दें। किसी भी प्रकार के लक्षण आने पर चिकित्सक से तुरंत संपर्क किया जाना चाहिए। अगर सही समय पर त्वचा कैंसर की पहचान हो जाए तो उसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है।”
स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (SCC) क्या है?
शोध बताते हैं कि स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा त्वचा कैंसर का दूसरा सबसे आम प्रकार है। यह तब होता है, जब त्वचा लंबे समय तक पराबैंगनी (UV) किरणों के संपर्क में रहती है। इस स्थिति में एक्टिनिक केराटोसिस नामक पूर्व-कैंसर घाव बन सकते हैं, जो बाद में ट्यूमर का रूप ले सकते हैं और शरीर में अन्य अंगों तक फैलने की क्षमता रखते हैं। चिकित्सक मरीज की स्थिति और गंभीरता के अनुसार ही Radiation Therapy, Immunosuppression या अन्य चिकित्सीय पद्धति का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें सर्जकी भी एक प्रमुख विकल्प है।
जिनकी त्वचा संवेदनशील होती है, उन्हें साड़ी को कसकर नहीं बांधना चाहिए।
अपनी त्वचा के अनुसार ही फैब्रिक का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि कई बार लोगों को किसी खास किस्म के कपड़ों से संक्रमण आदि की समस्या होती है, जो आगे चलकर गंभीर परिणाम दे सकती है।
पेटीकोट में नाड़े की जगह चौड़ी बेल्ट का उपयोग किया जा सकता है ताकि दबाव कम पड़े। ध्यान रखें कि बेल्ट भी ज्यादा कसी हुई नहीं होनी चाहिए।
हर बार एक ही स्थान पर साड़ी ना बांधे। आप चाहे तो उसके जगह को थोड़ा ऊपर-नीचे किया जा सकता है ताकि लगातार दबाब की समस्या ना हो।
अतः उपरोक्त शोध पत्रों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह दावा आधा सत्य है। भारत में साड़ी कैंसर के केस अभी काफी कम हैं। ऐसे में जागरुकता और बचाव के जरिए साड़ी कैंसर से बचा जा सकता है। हमने पहले भी कई दावों की जाँच की है, जैसे- जायफल चेहरे के काले धब्बों को ठीक कर सकता है. किसी भी तरह के भ्रामक दावों से दूर रहे।
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