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  • सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि ममता बनर्जी हर बार चुनाव से पहले चोटिल हो जाती हैं, जिसके पीछे स्वयं का वोट बैंक बढ़ाना उनका उद्देश्य है। वहीं कई सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चोट का राजनीतिकरण किया जा रहा है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा ज्यादातर गलत है। दावा सोशल मीडिया पर जारी इस पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि ममता बनर्जी हर बार चुनाव से पहले चोटिल हो जाती हैं, जिसके पीछे स्वयं का वोट बैंक बढ़ाना उनका उद्देश्य है। मुख्यमंत्री ममता गंभीर रूप से घायल हो गई हैं, कृपया उनके लिए प्रार्थना करें। ममता बनर्जी के घायल होने की खबर सबसे पहले यही से चलनी शुरू हुई। इसके बाद विभिन्न न्यूज चैनल, वेबसाइट्स पर उनके घायल होने की खबरें चलाई जाने लगीं। हालांकि पश्चिम बंगाल सरकार या तृणमूल कांग्रेस की तरफ से आधिकारिक तौर पर नहीं बताया गया है कि ममता बनर्जी कैसे चोटिल हुईं? कोलकाता से आ रही खबरों के मुताबिक ममता को SSKM अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। SSKM अस्पताल ने चिकित्सकों ने मीडिया के सामने आकर ममता बनर्जी की चोट के बारे में सबको सूचना दी। इसमें अस्पताल प्रशासन द्वारा कहा जा रहा है कि उन्हें किसी ने पीछे से धक्का दिया और वे गिर गई। एक दूसरे X (ट्विवटर) पोस्ट (जो एक प्रतिष्ठित मीडिया हाउस है) में कहा जा रहा है कि अस्पताल प्रशासन अपने बयान से मुकर गया। अब अस्पताल प्रशासन का कहना है कि ममता बनर्जी को किसी ने धक्का नहीं दिया बल्कि वे किसी झटके के कारण लड़खड़ाकर गिर गई। उल्लेखनीय है कि ममता बनर्जी पहले भी कई बार चोटिल हो चुकी हैं, जिसकी जानकारी उन्होंने Mar 14, 2021 को अपने ट्विवटर अकाउंट के जरिए दी थी। उस समय पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव को लेकर चुनावी माहौल था। देखा जाए तो ममता बनर्जी के घायल होने की तस्वीर को देख कर सवाल खड़ा होता है कि एक मुख्यमंत्री के पास सदैव आपातकालीन सेवा की सुविधा होती है फिर उन्हें प्राथमिक उपचार क्यों नहीं दिया गया, जिसमें घायल व्यक्ति की चोट, खून आदि को साफ किया जाता है। वहीं अस्पताल प्रशासन का द्वारा सटीक बयान ना आना भी शक के दायरे को बढ़ा देता है क्योंकि एक तरफ अस्पताल प्रशासन धक्का देने की बात करता है, तो वहीं ट्विवटर पर एक मीडिया चैनल द्वारा प्रशासन की बात को गलत बताया जा रहा है। ऐसे में आम जनता के लिए समझना मुश्किल है कि असल में क्या हुआ था और ये जानकारी स्वयं ममता बनर्जी ही दे सकती हैं। इसके अलावा विपक्ष पार्टियों द्वारा भी उनके जल्द स्वस्थ होने को लेकर ट्विवटर पर पोस्ट्स जारी हुए हैं। ऐसे में ममता की चोट चुनावी माहौल से प्रेरित है या नहीं, फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता है। अतः उपरोक्त बयानों एवं मीडिया द्वारा संलग्न जानकारी के अनुसार कहा जा सकता है कि यह दावा ज्यादातर गलत है। सोशल मीडिआ पर जारी एक पोस्ट में वर्ष २०२३ के पोस्टर को इंगित करते हुए लिखा गया है कि National Deworming जरूरी है। हालांकि यह पोस्ट सीधे तौर पर कृमि मुक्ति की बात नहीं करती, जो स्वास्थ्य से संबंधित हो बल्कि दो नेताओं को कृमि बताते हुए, उससे मुक्ति की बात करती है। ऐसे में जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा बिल्कुल गलत है। यहां इस गलत सूचना से तात्पर्य उस जानकारी से है, जो सत्य से उत्पन्न होती है लेकिन तोड़ मरोड़ कर पेश की जाती है, जो गुमराह करती है और संभावित नुकसान पहुंचाती है। दावा X पर जारी एक पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि राष्ट्रीय तौर पर कृमि मुक्ति यानी कि National Deworming जरूरी है। हालांकि यह पोस्ट सीधे तौर पर कृमि मुक्ति की बात नहीं करती, जो स्वास्थ्य से संबंधित हो बल्कि दो नेताओं को कृमि बताते हुए, उससे मुक्ति की बात करती है। तथ्य जाँच पोस्ट में क्या दिखाया गया है? पोस्ट में साल 2023 की न्यूज की कटिंग है, जिसे साल 2024 में लोकसभा चुनाव से एकदम पहले लोगों में भ्रम फैलाने, गलत जानकारी देने एवं जान-बूझकर आपसी सौहार्द को बिगाड़ने के लिए साझा किया जा रहा है। इस पोस्ट के कमेंट्स सेक्शन में तरह-तरह के विरोधाभासी कमेंट्स मौजूद हैं, जो दो नेताओं को इंगित करते हुए उन्हें देश के लिए कीड़ा यानी की कृमि की संज्ञा दे रहे हैं। जैसे- इस कमेंट को देखे- ऐसे में किसी आम नागरिक द्वारा इन कमेंट्स को देखकर तो यही कयास लगाए जा सकते हैं कि इस पोस्ट में दो नेताओं को कृमि मुक्ति दिवस पर हटाने की बात कही गई है। इसके अलावा इस पोस्ट में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा Basavaraj S Bommai भी मौजूद हैं, जो कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। ऐसे में Basavaraj S Bommai तो फिलहाल सत्ता में सक्रिय नहीं हैं, तो उन्हें किस सत्ता से हटाने की बात हो सकती है? इससे एक बात तो बिल्कुल स्पष्ट है कि इस पोस्ट का उद्देश्य आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में लोगों को गुमराह करने का है। नेताओं को चुनना या न चुनना कैसे संभव है? किसी भी नेता को कृमि मुक्ति दिवस से नहीं बल्कि अपने वोट देने की शक्ति से सत्ता में लाया जा सकता है या सत्ता से बाहर किया जा सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत वोट देने के अधिकार की गारंटी भारत के संविधान द्वारा दी गई है। इस विशेष अधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रत्येक नागरिक को 18 वर्ष की आयु प्राप्त करनी होगी। 1950 में ‘सार्वभौमिक मताधिकार’ की अवधारणा के तहत भारत के नागरिकों को पूर्ण मतदान अधिकार की गारंटी दी गई थी। अतः उपरोक्त जानकारी के आधार पर कहा जा सकता है कि यह दावा बिल्कुल गलत है। सोशल मीडिया पर जारी एक पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि चंडीगढ़ से BJP सांसद किरण खेर ने दलित समाज का अपमान किया है। चंडीगढ़ मेयर के भाषण के बाद किरण खेर ने माइक को सैनिटाइज किया है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा अधिकतर झूठ है। हां, किरण खेर ने माइक को सैनिटाइज तो किया है लेकिन चुनावी माहौल होने के कारण इस बात को बढ़ा-चढाकर पेश किया जा रहा है। किरण खेर चंडीगढ़ से BJP सांसद हैं और वे चंडीगढ़ राज्यपाल के एक आयोजन में हिस्सा लेने गई थीं। लोकसभा चुनावों की सरगर्मियों के बीच नित विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। अपने ऊपर लगे आरोपों का खंडन करते हुए किरण खेर ने एक मीडिया हाउस को दिए अपने साक्षात्कार में कहा है, “मेरे माइक को सैनिटाइज करने की प्रक्रिया का राजनीतिकरण किया जा रहा है। यह बहुत दुखद है कि इस तरह का मुद्दा उठाया जा रहा है। स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के कारण मेरी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो गई है इसलिए जब भी मैं मास्क नहीं पहनती हूं, तो मेरे Personal Security Officer (PSO) हमेशा माइक को साफ करते हैं। यह एक आम प्रक्रिया है, जिसका मैं पालन करती हूं। अभी सिर्फ चुनाव के कारण इसका राजनीतिकरण किया जा रहा है। यह पूरी तरह से मेरे स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के कारण है।” देखा जाए, तो किरण लगातार किसी ना किसी स्वास्थ्य संबंधी समस्या से जूझती रही है। ऐसे में संक्रमण से बचना एवं अपनी रोग-प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत रखना उनके लिए बेहद आवश्यक है। Multiple Myeloma क्या है? Multiple Myeloma प्लाज्मा कोशिकाओं का एक कैंसर है, जो एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका है, जो आमतौर पर एंटीबॉडी का उत्पादन करके संक्रमण से लड़ने में मदद करती है। इस कैंसर में प्लाज्मा कोशिकाएं असामान्य ढंग से बढ़ने लगती हैं, जिससे अस्थि मज्जा (bone marrow) से स्वस्थ रक्त कोशिकाएं (red blood cells) बाहर निकलने लगती हैं। इससे कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं- हालांकि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये सामान्य अनुशंसाएं हैं। आपको जो विशिष्ट सावधानियां बरतनी होंगी वे आपकी व्यक्तिगत स्थिति के आधार पर अलग-अलग हो सकती है। आपके लिए क्या सही है, इसकी जानकारी के लिए अपने चिकित्सक से अवश्य बात करें। अतः उपरोक्त शोध पत्रों एवं बयानों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह दावा अधिकतर झूठ है क्योंकि किरण खेर ने माइक को साफ तो किया लेकिन इसके पीछे कि मंशा राजनीतिक या चुनावी माहौल से प्रेरित नहीं थी, बल्कि उनका निजी स्वास्थ्य है। हमने पहले भी चुनावी माहौल से ओत-प्रोत दावों की पड़ताल की है, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं। विश्व अल्जाइमर रिपोर्ट 2021 के अनुसार, डिमेंशिया विश्व स्तर पर मृत्यु दर का 7वां प्रमुख कारण है। अल्जाइमर रोग इंटरनेशनल द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में 55 मिलियन लोग मनोभ्रंश से ग्रसित हैं, जिनमें से केवल 25% का ही वास्तव में निदान किया जाता है। इसके अलावा, कम आय वाले देशों में यह प्रतिशत बहुत कम भी हो सकता है। परिचय अल्जाइमर रोग एक सामान्य न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग है, जो आमतौर पर वृद्धावस्था के दौरान लोगों में पाया जाता है। यह मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में न्यूरॉन्स को विकृत करके उनके संज्ञानात्मक और व्यवहार कौशल को प्रभावित करता है। दुनिया भर में डिमेंशिया के लगभग 60 प्रतिशत मामले इसमें शामिल हैं। यह बीमारी सेरेब्रल कॉर्टेक्स और हिप्पोकैम्पस में पट्टिका निर्माण का कारण बनती है, जो क्रमशः संज्ञानात्मक सोच और स्मृति के लिए क्षेत्र हैं। इसके कारण, रोगी की स्मृति प्रभावित होती है, जो बदले में उनके सामाजिक और व्यावसायिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। अल्जाइमर रोग धीरे-धीरे विकसित होता है। इसके लक्षणों को स्पष्ट होने में लगभग एक दशक का समय लगता है। इस चरण से पहले, रोगी में होने वाले बदलाव बिल्कुल सामान्य होते हैं, जिस कारण लोगों का ध्यान इस ओर कम जाता है क्योंकि कई बार लोग इसे उम्र का तकाज़ा मान लेते हैं। सबसे आम लक्षणों में स्मृति की हानि होना शामिल है, जो हल्के भ्रम से शुरू होती है और बाद में गंभीरता की ओर बढ़ती है, जहां व्यक्ति को भोजन निगलने जैसी बुनियादी चीजों को भी याद रखने में कठिनाई होती है। भटकना और खोया हुआ महसूस करना संवाद में समस्याएं और वाक्य बनाने के लिए शब्द खोजने में कठिनाई भ्रम, व्यामोह और मतिभ्रम मनोदशा में बदलाव और चिंता चेहरे पहचानने में कठिनाई घड़ी की व्याख्या करने जैसी सामान्य समस्याओं को हल करने में कठिनाई नहाने, खाने आदि जैसे दिन-प्रतिदिन के कार्यों को करने में कठिनाई। अल्जाइमर रोग होने के कारण अल्जाइमर रोग होने का कोई एक विशिष्ट कारण स्थापित नहीं किया गया है। हालांकि अल्जाइमर रोग के विकास और प्रगति में आनुवंशिक, जीवनशैली और पर्यावरणीय कारणों की भूमिका होती है। शोध से पता चला है कि अल्जाइमर के विषाक्त प्रोटीन मस्तिष्क में विकसित होते हैं, जो न्यूरोनल क्षति का कारण बनते हैं, जिससे स्वस्थ कोशिकाओं की क्षति होती है। इसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क की सिकुड़ती और छोटी कोशिकाएं बनती हैं। पट्टिका निक्षेप दो प्रकार के हो सकते हैंः एमिलॉइड प्रकारः मस्तिष्क में बीटा एमिलॉइड प्रोटीन जमा होता है। न्यूरोफाइब्रिलरी टेंगल्स (एनएफटी): टाऊ प्रोटीन मस्तिष्क की कोशिकाओं के चारों ओर टेंगल्स नामक एक विषाक्त स्थिति बनाता है। अल्जाइमर होने के जोखिम कारक आयुः 60 वर्ष की आयु के बाद अल्जाइमर रोग होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। पारिवारिक इतिहासःएपीओई 4 जीन की उपस्थिति वाले रोगियों या भाई-बहनों में इस बीमारी का सकारात्मक इतिहास होने से बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। वंशानुगत आनुवंशिक विकारःडाउन सिंड्रोम जैसी स्थितियाँ भी संभावित जोखिम कारक हैं। लिंगःशोध से पता चलता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक प्रभावित होती हैं। हालांकि इस दावे के पीछे कारण की स्पष्टता की कमी है। आघातः इसमें न्यूरॉन्स धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होने लगते हैं, जिससे अल्जाइमर रोग का विकास हो सकता है। अवसादः अवसाद के कारण भी अल्जाइमर रोग होने की संभावना को बढ़ जाती है। खराब जीवनशैलीः मधुमेह, उच्च रक्तचाप और पर्याप्त नींद ना लेने से भी अल्जाइमर का खतरा बढ़ सकता है। अल्जाइमर रोग के चरण इस बीमारी के मुख्य रूप से तीन चरण हैंः अल्जाइमरः व्यक्ति के संज्ञानात्मक और व्यवहार कौशल में छोटे बदलाव होते हैं। जैसे- भ्रम, बिलों का भुगतान करने में अधिक समय लेना, मनोदशा में बदलाव आदि। मध्यम अल्जाइमरः चेहरों को पहचानने में कठिनाई, आवेगपूर्ण व्यवहार, भ्रम आदि के साथ स्मृति की हानि होना, मतलब याद रखने में कठिनाई। गंभीर अल्जाइमरः मस्तिष्क का गंभीर क्षय होता है, जिससे संचार, कपड़े पहनना, खाना आदि जैसी बुनियादी दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों का संचालन करने में असमर्थता होती है। रोगी आमतौर पर इस अवस्था में बिस्तर पर होता है। अल्जाइमर रोग की जटिलताएं संचार में गंभीर समस्याएं जिसके कारण व्यक्ति किसी भी दर्द या असुविधा के बारे में बताने में असमर्थ होता है। संक्रमण भोजन और पानी का असामान्य सेवन शरीर के असंतुलित हो जाने के कारण, रोगी के गिरने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है दवाओं और उपचार योजनाओं को भूल जाना रोगी की खुद को और अपने परिवार के सदस्यों को याद रखने में असमर्थता अल्जाइमर रोग का निदान सही निदान करना कभी-कभी बहुत कठिन काम होता है। आमतौर पर भूलना सामान्य उम्र बढ़ने की प्रक्रिया से जुड़ा होता है इसलिए अल्जाइमर की प्रारंभिक स्थिति और प्रारंभिक निदान को नजरअंदाज कर दिया जाता है। निदान के लिए मस्तिष्क के कार्य और संरचना का आकलन करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाते हैंः व्यक्ति की सोचने और याद रखने की क्षमता का आकलन करने के लिए संज्ञानात्मक और स्मृति परीक्षण। उनके संतुलन, इंद्रियों और प्रतिवर्तों के मूल्यांकन के लिए तंत्रिका संबंधी कार्य परीक्षण। यह देखने के लिए कि क्या प्रभावित प्रोटीन बाहर निकल रहे हैं, रक्त या मूत्र परीक्षण करना भी महत्वपूर्ण है। मस्तिष्क के ऊतकों और पट्टिकाओं के जमाव का आकलन करने के लिए मस्तिष्क का सीटी स्कैन या एमआरआई स्कैन भी किया जाता है। ए. पी. ओ. ई. 4 जीन भागीदारी का आकलन करने के लिए आनुवंशिक परीक्षण भी शामिल है। अल्जाइमर का इलाज देखा जाए, तो अभी तक इस बीमारी को ठीक करने के लिए कोई दवा या उपचार उपलब्ध नहीं है। हालांकि विशेष रूप से बाद के चरणों में संकेतों और लक्षणों के प्रबंधन में सहायता करने के लिए रोगी और उनके परिवार दोनों के लिए विभिन्न कार्यक्रम और सहायता समूह की मदद ली जा सकती है। वे रोगी को कुछ बुनियादी समस्या समाधान क्षमताएँ, संचार कौशल, दैनिक कार्य आदि सिखाते हैं, वे मरीज के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकते हैं। अल्जाइमर रोग की रोकथाम अल्जाइमर होने का कोई निश्चित कारण ज्ञात नहीं है, इसलिए कोई निश्चित निवारण के तरीके भी नहीं है। हालांकि, निम्नलिखित उपाय करने से शरीर के सामान्य स्वास्थ्य को बनाए रखने और सभी प्रणालियों के बेहतर कामकाज में मदद मिलेगी, जो रोग के विकास और प्रगति को रोक सकते हैं- क्या आपको चॉकलेट बिस्कुट और कुकीज़ पसंद हैं? क्या आपने कभी रुककर सोचा है कि आप जिस बिस्कुट के लिए जा रहे हैं वह स्वस्थ है या नहीं? समय-समय पर एक मीठी दावत में शामिल होना आपकी इच्छाओं को संतुष्ट करने का एक सुखद तरीका है। चॉकलेट आधारित बिस्कुट में कुरकुरा बनावट और समृद्ध कोको स्वाद का सही मिश्रण होता है। हालांकि, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ने के साथ, यह समझना महत्वपूर्ण है कि इनमें से कौन से व्यंजन न केवल स्वाद प्रदान करते हैं, बल्कि पोषण मूल्य भी प्रदान करते हैं। इस लेख में, हम शीर्ष 10 भारतीय चॉकलेट-आधारित बिस्कुट ब्रांडों के तुलनात्मक विश्लेषण में तल्लीन होंगे। हम उनकी पोषण सामग्री और घटकों की सूची पर ध्यान केंद्रित करेंगे। पोषण संबंधी तुलना शीर्ष 10 बिस्किट ब्रांड संख्या(ग्राम) कैलोरी कुल वसा (ग्राम) कार्बोहाइड्रेट चीनी (ग्राम) फाइबर (ग्राम) प्रोटीन (ग्राम) हाईड एंड सीक 4 बिस्किट 121 किलो कैलोरी 4.70 18.00 8.0 1.1 ग्रा 1.60 बोरबॉन 4 बिस्किट 197 किलो कैलोरी 8.12 29.08 14.04 – 2 मलकिस्ट 4 बिस्किट 352 किलो कैलोरी 15.2 48 ग्राम 12 ग्राम – 5.6 टाइगर चॉकलेट बिस्किट 4 बिस्किट 77.28 किलो कैलोरी 3.04 11.52 4.51 – 0.96 यूनीबिक चॉकलेट इनरिच्ड 4 बिस्किट 141 किलो कैलोरी 5.99 20.4 8.2 – 1.7 बॉर्न्विटा बिस्किट 4 बिस्किट 104 किलो कैलोरी 3.47 16.90 7.86 – 1.54 ओरियो बिस्किट 4 बिस्किट 206 किलो कैलोरी 7.90 31.00 19.0012 0.6 2.10 कैडबरी चोको चिप 4 बिस्किट 97.8 किलो कैलोरी 3.78 14.5 6.552 – 1.5 हैप्पी हैप्पी बिस्किट 4 बिस्कुट 122.25 किलो कैलोरी 5.025 17.85 7.6 – 1.45 गुड डे चॉकलेट 4 बिस्किट 112.6 किलो कैलोरी 5.28 `14.96 7.38 – 1.34 हमेशा उत्पाद लेबल को ध्यान से पढ़ना और संकेतित सर्विंग आकार की समीक्षा करने के बाद ही इनका सेवन करना आवश्यक है। विभिन्न ब्रांड अपने डाटा के अनुसार सामग्रियों को बनाते हैं इसलिए यह आवश्यक है कि बताए गए सर्विंग आकार से अधिक न हो। ब्रांड प्रमुख सामग्रियां हाईड एंड सीक गेहूं का आटा, चॉकलेट (23% सामग्री शामिल), चीनी, कोको ठोस, कोकोआ मक्खन, डेक्सट्रोज़, एक सोया-आधारित इमल्सीफायर (लेसिथिन), कृत्रिम वेनिला स्वाद, चीनी की चाशनी, परतें बढ़ाने वाले एजेंट (503 (द्वितीय), 500 (द्वितीय)), अतिरिक्त कोको ठोस, आयोडिन युक्त नमक, विभिन्न स्वाद देने वाले पदार्थ बोरबॉन गेहूं का आटा, खाद्य वनस्पति तेल, चीनी, खाने योग्य स्टार्च, कोको ठोस, दूध ठोस, आयोडिन युक्त नमक, कृत्रिम स्वाद देने वाला पदार्थ जिसे वेनिला चॉकलेट के नाम से जाना जाता है मलकिस्ट गेहूं का आटा, वनस्पति तेल (विशेष रूप से एंटीऑक्सीडेंट बीएचए के साथ पाम ओलीन), चीनी, मट्ठा, ग्लूकोज़ सिरप, दूध पाउडर (4.73% सामग्री पर), कोको पाउडर (3.72% सामग्री पर), टैपिओका स्टार्च, ख़मीर बनाने वाले एजेंट (E500, E503), नमक, यीस्ट, माल्ट अर्क (सामग्री का 0.48% के लिए लेखांकन), एक पायसीकारक के रूप में सोया लेसिथिन, बी1, बी2, बी6, बी12 सहित एक विटामिन प्रीमिक्स, अतिरिक्त स्वाद के लिए एक कृत्रिम चॉकलेट स्वाद टाइगर चॉकलेट बिस्किट गेहूं का आटा, खाद्य वनस्पति तेल, चीनी, खाने योग्य स्टार्च, कोको ठोस, दूध ठोस, आयोडिन युक्त नमक, कृत्रिम स्वाद देने वाला पदार्थ जिसे वेनिला चॉकलेट के नाम से जाना जाता है यूनीबिक चॉकलेट इनरिच्ड गेहूं का आटा (मैदा), चॉकलेट बिस्किट में 21% सामग्री होती है, जिसमें चीनी, कोको ठोस, कोकोआ मक्खन, डेक्सट्रोज़ और इमल्सीफायर (ई322, ई476) जैसे तत्व शामिल होते हैं। इसके अतिरिक्त, इसमें चीनी, खाद्य वनस्पति तेल (विशेष रूप से ताड़ का तेल), सूखा नारियल, मक्खन, स्किम्ड मिल्क पाउडर, लेवनिंग एजेंट (E503 (II), E500 (II)), सोया-आधारित इमल्सीफायर (E322), नमक और वैनिलिन नामक कृत्रिम स्वाद शामिल है। बौरविटा बिस्किट गेहूं का आटा (51%), चीनी, पामोलीन तेल, अनाज आधारित पेय मिश्रण (5%), जौ और गेहूं से प्राप्त अनाज का अर्क (57%), चीनी, कोको ठोस, रंगीन (150सी) तरल ग्लूकोज, गेहूं लस, माल्टोडेक्सट्रिन, इमल्सीफायर्स (322, 471), खाद्य रेनेट कैसिइन, दूध ठोस, विटामिन, खनिज, जुटाने वाले एजेंट (500(ii)), आयोडिन युक्त नमक, प्राकृतिक, कृत्रिम (वेनिला) स्वाद देने वाले पदार्थों का संयोजन, चीनी, अतिरिक्त कोको ठोस (1.5%), दूध के ठोस पदार्थ (1%), खमीर उठाने वाले एजेंट (500(ii), 503(ii)), खनिज, आयोडिन युक्त नमक, समान स्वाद देने वाले पदार्थ, इमल्सीफायर्स (322), रंगीन (150सी), और विटामिन। कृपया ध्यान दें कि इसमें दूध, गेहूं, जौ सहित एलर्जी कारक शामिल हैं, और सोया में ट्री नट्स के अंश हो सकते हैं। ओरियो बिस्किट गेहूं का आटा (मैदा), चीनी, आंशिक वसा, पामोलीन तेल, कोको ठोस (2%), चीनी, ख़मीर बनाने वाले एजेंट (500(ii), 503(ii)), स्टार्च, आयोडिन युक्त नमक, इमल्सीफायर (322), और समान स्वाद देने वाले पदार्थ कैडबरी चोको चिप अनाज आधारित पेय मिश्रण जिसमें 5% शामिल है, मिश्रण में स्वयं अनाज का अर्क (57% जौ और गेहूं से प्राप्त) होता है, चीनी, कोको ठोस, कलरेंट (150सी), तरल ग्लूकोज, गेहूं लस, माल्टोडेक्सट्रिन, पायसीकारी (322, 471), खाद्य रेनेट कैसिइन, दूध ठोस, विटामिन, खनिज, रेजिंग एजेंट (500(ii)), आयोडिन युक्त नमक, कृत्रिम (वेनिला) स्वाद देने वाले पदार्थों से युक्त स्वाद। इसमें चीनी, अतिरिक्त कोको ठोस (1.5%), दूध ठोस (1%), लेवनिंग एजेंट (500(ii), 503(ii)), खनिज, आयोडीन युक्त नमक, प्राकृतिक और प्रकृति-समान स्वाद देने वाले पदार्थ, इमल्सीफायर ( 322), रंगीन (150सी), और विटामिन। हैप्पी हैप्पी बिस्किट गेहूं का आटा (मैदा), चीनी, परिष्कृत ताड़ का तेल, चॉको चिप्स (8%) जिसमें चीनी होती है, हाइड्रोजनीकृत वनस्पति वसा, कोको ठोस, एक पायसीकारक के रूप में सोया लेसिथिन, और कृत्रिम स्वाद देने वाले पदार्थ (वेनिला)। इसके अतिरिक्त, इसमें कोको ठोस (29%) का उच्च अनुपात होता है, चीनी सिरप, बढ़ाने वाले एजेंट (503 (II), 500 (II)), आयोडीन युक्त नमक, और एक वनस्पति मूल इमल्सीफायर (ग्लिसरॉल के डायसेटाइलटार्टरिक और फैटी एसिड एस्टर)। इसमें अनुमत प्राकृतिक खाद्य रंग (150डी) और कृत्रिम स्वाद देने वाले पदार्थों (चॉकलेट) के रूप में अतिरिक्त स्वाद शामिल हैं। गुड डे चॉकलेट गेहूं का आटा (मैदा), चीनी, खाद्य वनस्पति तेल, चॉकलेट चिप्स, दूध ठोस, मक्खन, आयोडिन युक्त नमक, कोको ठोस, स्वाद देने वाले पदार्थ जो प्राकृतिक और कृत्रिम चॉकलेट और वेनिला दोनों स्वादों की नकल करते हैं क्या चॉकलेट एक स्वस्थ खाद्य पदार्थ है? लोग आम तौर पर चॉकलेट बिस्कुट का सेवन स्वस्थ विकल्पों के बजाय स्वादिष्ट व्यंजनों के रूप में करते हैं। इनमें अक्सर उच्च स्तर की अतिरिक्त चीनी, अस्वास्थ्यकर वसा और परिष्कृत आटा होता है। हालांकि वे भूख को संतुष्ट कर सकते हैं, उनका पोषण मूल्य सीमित है क्योंकि उनमें खाली कैलोरी होती है। यदि कभी-कभी और संतुलित आहार के हिस्से के रूप में सेवन किया जाता है, तो उनका आनंद संयम से लिया जा सकता है। हालांकि, एक स्वस्थ विकल्प के लिए, साबुत अनाज, कम चीनी और प्राकृतिक अवयवों वाले स्नैक्स का विकल्प चुनें। क्या चॉकलेट बिस्कुट कोलेस्ट्रॉल के लिए हानिकारक हैं? चॉकलेट बिस्कुट में आम तौर पर चीनी, अस्वास्थ्यकर वसा और परिष्कृत आटे की उच्च मात्रा होती है। इसके कारण वे एक हानिकारक आहार हो सकते हैं जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। इस तरह के बिस्कुट के नियमित सेवन से संभावित रूप से एलडीएल (खराब) कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ सकता है और हृदय संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है। ये समस्याएं अंततः आपके रक्तचाप को बाधित कर सकती हैं। बेहतर कोलेस्ट्रॉल प्रबंधन के लिए स्वस्थ सामग्री, कम ट्रांस वसा और न्यूनतम संसाधित शर्करा वाले स्नैक्स का विकल्प चुनने की सिफारिश की जाती है। क्या चॉकलेट बिस्कुट में कैफीन होता है? चॉकलेट बिस्कुट में कम मात्रा में कैफीन हो सकता है, मुख्य रूप से चॉकलेट में उपयोग किए जाने वाले कोको से। हालांकि, चॉकलेट बिस्कुट में कैफीन की मात्रा आमतौर पर कॉफी या चाय जैसे अन्य स्रोतों की तुलना में कम होती है। अंत में, चॉकलेट आधारित बिस्कुट का आनंद लेना एक सुखद अनुभव हो सकता है, लेकिन जानकार विकल्प चुनना महत्वपूर्ण है। उच्च कोको सामग्री और कम प्रसंस्कृत योजक वाले बिस्कुट चुनें। स्वाद और स्वास्थ्य के बीच संतुलन बनाने के लिए हमेशा पोषण संबंधी लेबल और सामग्री की जांच करें। याद रखें, संयमित उपभोग आपके समग्र स्वास्थ्य कल्याण से समझौता किए बिना इन व्यंजनों का स्वाद लेने की कुंजी है। चॉकलेट बिस्कुट से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न अगर मुझे दिल की बीमारी है तो क्या मैं चॉकलेट बिस्कुट खा सकता हूँ? यदि आपको हृदय की स्थिति है, तो चॉकलेट बिस्कुट से बचने की सलाह दी जाती है – वे अक्सर अस्वास्थ्यकर वसा और शर्करा में उच्च होते हैं, जो हृदय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसके बजाय, हृदय-स्वस्थ स्नैक्स जैसे फल, मेवे या साबुत अनाज का चयन करें। अगर मुझे गुर्दे की समस्या है तो क्या मैं चॉकलेट बिस्कुट खा सकता हूँ? यदि आपको गुर्दे की समस्या है, तो अपने आहार की सावधानीपूर्वक निगरानी करना महत्वपूर्ण है। चॉकलेट बिस्कुट में आम तौर पर फास्फोरस और पोटेशियम अधिक होता है, जो गुर्दे के कार्य के लिए हानिकारक हो सकता है। इनसे बचना या उन्हें सीमित करना सबसे अच्छा है। कम फास्फोरस और कम पोटेशियम वाले स्नैक्स जैसे चावल के केक या सेब का विकल्प चुनें। अगर मुझे लीवर की समस्या है तो क्या मैं चॉकलेट बिस्कुट खा सकता हूँ? यदि आपको यकृत की समस्या है, तो चॉकलेट बिस्कुट से बचने की सलाह दी जाती है। इनमें अक्सर उच्च स्तर की चीनी और अस्वास्थ्यकर वसा होती है, जो यकृत पर दबाव डाल सकती है। लिवर के अनुकूल खाद्य पदार्थ जैसे सब्जियां, लीन प्रोटीन और साबुत अनाज का विकल्प चुनें। अगर मुझे मधुमेह है तो क्या मैं चॉकलेट बिस्कुट खा सकता हूँ? यदि आपको मधुमेह है, तो आप कभी-कभी कम मात्रा में चॉकलेट बिस्कुट का आनंद ले सकते हैं। भाग के आकार और कार्बोहाइड्रेट सामग्री पर ध्यान दें, जब संभव हो तो कम चीनी वाले विकल्प चुनें। रक्त शर्करा के स्पाइक्स को कम करने के लिए उन्हें संतुलित भोजन में शामिल करना सबसे अच्छा है। अगर मुझे उच्च कोलेस्ट्रॉल है तो क्या मैं चॉकलेट बिस्कुट खा सकता हूँ? यदि आपके उच्च कोलेस्ट्रॉल है, तो चॉकलेट बिस्कुट को सीमित करना सबसे अच्छा है, क्योंकि उनमें आमतौर पर संतृप्त और ट्रांस वसा होती है जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ा सकती है। फल, मेवा या साबुत अनाज जैसे स्वस्थ स्नैक्स का विकल्प चुनें। अगर मेरी हड्डियाँ कमजोर हैं तो क्या मैं चॉकलेट बिस्कुट खा सकता हूँ? यदि आपकी हड्डियाँ कमजोर हैं, तो चॉकलेट बिस्कुट को सीमित करना सबसे अच्छा है। वे आम तौर पर कैल्शियम जैसे आवश्यक हड्डी-मजबूत करने वाले पोषक तत्वों में कम होते हैं और इसमें अत्यधिक चीनी और अस्वास्थ्यकर वसा हो सकती है। हड्डियों के स्वास्थ्य का समर्थन करने के लिए डेयरी, पत्तेदार साग और फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों जैसे स्रोतों से कैल्शियम से भरपूर आहार पर ध्यान दें। ट्विवटर पर जारी एक पोस्ट के जरिए दावा किया गया है कि लोकसभा चुनाव में भाग लेने के बाद भी पश्चिम बंगाल के निवासियों को आयुष्मान भारत योजना का लाभ नहीं मिल रहा है।। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा आधा सत्य है। दावा सोशल मीडिया पर जारी एक पोस्ट के जरिए दावा किया गया है कि लोकसभा चुनाव में भाग लेने के बाद भी पश्चिम बंगाल के निवासियों को आयुष्मान भारत योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। “हम (पश्चिम बंगाल) आयुष्मान भारत स्वास्थ्य सुविधाओं के लाभ से वंचित क्यों हैं। अगर हम प्रधानमंत्री चुनने के लिए लोकसभा चुनाव में भाग लेते हैं तो हम सरकार की स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ लेने से क्यों वंचित हैं।” लाभार्थी: सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011 (एसईसीसी 2011) के आधार पर भारत की आबादी का लगभग 50% तबका ऐसा है, जिसे इस योजना की जरुरत है। इसका अर्थ है कि 10 करोड़ से अधिक गरीब और कमजोर परिवार इसके लाभार्थी हो सकते हैं। क्या सभी राज्यों ने आयुष्मान भारत योजना को लागू किया है? नहीं। सरकार द्वारा जारी जानकारी की माने तो दिल्ली, ओडिशा और पश्चिम बंगाल ने आयुष्मान भारत योजना को लागू नहीं किया है। वहीं आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार अब तक इस योजना के अंतर्गत 12 करोड़ परिवारों के लगभग 55 करोड़ व्यक्ति शामिल हैं। सरकार द्वारा जारी जानकारी के अनुसार इस योजना के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक आयुष्मान भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन एजेंसी (एबी-एनएचपीएमए) स्थापित की गई है। राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को राज्य स्वास्थ्य एजेंसी- State Health Agency (SHA) नामक एक समर्पित इकाई द्वारा योजना को लागू करने की सलाह दी गई है। इसके अलावा वे या तो मौजूदा ट्रस्ट/सोसाइटी/नॉट फॉर प्रॉफिट कंपनी/स्टेट नोडल एजेंसी (एसएनए) का उपयोग कर सकते हैं या योजना को लागू करने के लिए एक नई इकाई स्थापित कर सकते हैं। क्या आयुष्मान भारत योजना को लागू नहीं करने के पीछे कोई मंशा है? संघ सूची (Union List): इस सूची में वे विषय शामिल हैं, जिनके तहत भारत की संसद कानून बना सकती है। जैसे- रक्षा, विदेशी मामले, रेलवे, मुद्रा आदि। राज्य सूची (State List): इस सूची में वे विषय शामिल हैं, जिनके तहत राज्य विधानमंडल कानून बना सकते हैं। जैसे- सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, अस्पताल और औषधालय, कृषि। समवर्ती सूची (Concurrent List): इस सूची में वे विषय शामिल हैं, जिनके तहत संसद और राज्य विधानमंडल दोनों कानून बना सकते हैं। जैसे- शिक्षा, आपराधिक कानून, वन, वन्यजीवों की सुरक्षा, आदि। वहीं स्वास्थ्य, विशेष रूप से “Public health and sanitation; hospitals and dispensaries” (सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, अस्पताल और औषधालय) भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में सूचीबद्ध है। इन विषयों पर राज्य नियम, योजना आदि बनाने के लिए स्वतंत्र है। ऐसे में संविधान के अनुसार किसी राज्य के ऊपर किसी तरह का दबाव नहीं है कि उन्हें इस योजना को लागू करना ही है। वहीं अगर सोशल मीडिया पर किये गए दावे की बात करैं तो वह दावा आधा ही सत्य है क्योंकि चुनाव में किसी प्रत्याशी को वोट देना और प्रधानमंत्री को चुनने का मतलब यह नहीं है कि प्रधानमंत्री द्वारा लागू की गयी सब योजनाओं का लाभ पूर्ण रूप से सबको मिल सकेगा। प्रधानमंत्री केंद्रीय स्तर पर योजनाएं लागू करता है और राज्य संविधान की सूचियों के अनुसार उन्हें लागू करने या न करने के लिए स्वतंत्र हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आयुष्मान भारत योजना पश्चिम बंगाल राज्य में 23.09.2018 से 10.01.2019 तक लागू की गई थी। पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार 10.01.2019 को इस योजना से बाहर हो गई। यह जानकारी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालयस्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग भारत सरकार द्वारा 10 फरवरी 2023 को दी गई है। भले ही यह योजना पश्चिम बंगाल में लागू नहीं है लेकिन इसके पीछे केवल केंद्र या राज्य सरकार पर आम जनता द्वारा दोषारोपण करना गलत होगा क्योंकि जो भी है, वो संविधान के अनुरुप ही है। एक फेसबुक पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि लहसुन, प्याज, लौंग, काली मिर्च और मेथी दानों को सरसों के तेल में पकाने के बाद घुटनों में लगाने से जोड़ों का दर्द नहीं होता है। जब हमने इस वीडियो का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा ज्यादातर गलत है। अत्यधिक प्रयोग: यह घुटने के दर्द का सबसे आम कारण है। यह दौड़ने, कूदने या सीढ़ियां चढ़ने जैसी गतिविधियों के कारण हो सकता है। अत्यधिक प्रयोग से घुटने के ऊतकों में जलन हो सकती है, जिससे दर्द और सूजन हो सकती है। इसे Jumper’s knee (patellar tendonitis) भी कहा जाता है। चोटें: घुटनों में चोट लगना भी घुटनों के दर्द का एक प्रमुख कारण है। जैसे – लिगामेंट में सूजन होना या किसी कारण हड्डियों का टूटना भी दर्द का कारण बन सकते हैं। ये चोटें अचानक लगने वाले प्रभाव से हो सकती हैं, जैसे कि गिरना या किसी दुर्घटना के कारण। गठिया: ऑस्टियोआर्थराइटिस और रुमेटीइड आर्थराइटिस, गठिया के दो सामान्य प्रकार हैं, जो घुटने को प्रभावित कर सकते हैं। गठिया के कारण घुटनों में दर्द, कठोरता और सूजन हो सकती है। ऑस्टियोआर्थराइटिस में धीरे-धीरे बढ़ती उम्र के साथ घुटनों की समस्या बढ़ने लगती है। वहीं रुमेटीइड गठिया एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली घुटने सहित शरीर के कई जोड़ों में स्वस्थ ऊतकों पर हमला करती है। यह घुटने के जोड़ के आसपास के कैप्सूल, सिनोवियल झिल्ली की सूजन का कारण बनता है। सूजन वाली कोशिकाएं ऐसे पदार्थ का रिसाव करती है, जो समय के साथ घुटने के cartilage को कमजोर कर देते हैं। यह किसी भी उम्र में हो सकता है। बर्साइटिस (Bursitis): बर्साइटिस में तरल पदार्थ से भरी थैलियों में सूजन होने लगती है, जो घुटने के आसपास की हड्डियों, टेंडन और मांसपेशियों को सहारा देती है। यह अत्यधिक प्रयोग, चोट या कुछ बीमारियों के कारण हो सकता है। वजन: अधिक वजन या मोटापे के कारण घुटनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे दर्द हो सकता है। क्या प्याज, लहसुन, लौंग, मेथी दाना और काली मिर्च घुटनों के दर्द को ठीक करते हैं? फिलहाल, निश्चित रूप से इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, जो लहसुन, प्याज, काली मिर्च, मेथी (मेथी के बीज) और सरसों के तेल का मिश्रण दर्द से राहत दिलाने को लेकर प्रमाणिकता की पुष्टि करता हो। हालांकि इन सामग्रियों में कुछ गुण हैं, जो संभावित लाभ प्रदान कर सकते हैं। जैसे – लहसुन: इसमें सूजन-रोधी यौगिक होते हैं, जो संभावित रूप से कुछ प्रकार के दर्द में मदद कर सकते हैं। आर्थराइटिस फाउंडेशन के अनुसार, लहसुन में diallyl disulphide नामक यौगिक होता है, जो प्रो-इंफ्लेमेटरी साइटोकिन्स (pro-inflammatory cytokines) के प्रभाव को सीमित करता है। लहसुन सूजन से लड़ने और गठिया के कारण होने वाली उपास्थि (cartilage) की हानि को रोकने में मदद कर सकता है लेकिन ये घुटनों के सभी प्रकार के दर्द से राहत देगा या पूरी तरह से ठीक कर देगा, इस बात का कोई प्रमाण नहीं है। प्याज: इसमें भी एंटी-इंफ्लेमेटरी यानी सूजनरोधी गुण होते हैं। आर्थराइटिस फाउंडेशन के अनुसार, प्याज फ्लेवोनोइड्स का भी सबसे समृद्ध स्रोत होता है, जो कि एक एंटीऑक्सिडेंट है। यह शरीर की कोशिकाओं को मुक्त कणों से होने वाले नुकसान को समाप्त करता है। प्याज में पाया जाने वाला एक फ्लेवोनोइड, जिसे क्वेरसेटिन कहा जाता है, जानवरों और कोशिका संस्कृतियों में ऑस्टियोआर्थराइटिस और रुमेटीइड गठिया में सूजन पैदा करने वाले ल्यूकोट्रिएन, प्रोस्टाग्लैंडीन और हिस्टामाइन को रोक सकता है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि क्या यह सभी लोगों पर एक समान प्रभाव डालता है या अलग-अलग। काली मिर्च: काली मिर्च में पिपेरिन होता है, जो हल्के या साधारण दर्द को कम करने और सूजन-रोधी प्रभाव डाल सकता है। पशुओं पर किए गए शोध के परिणामों से पता चलता है कि गठिया के दर्द में काली मिर्च में पाए जाने वाले पिपेरिन में सूजन-रोधी, एंटीनोसाइसेप्टिव और एंटीआर्थ्राइटिक प्रभाव होते हैं। यही कारण है कि इसके बेहतर उपयोग, फार्मास्युटिकल या आहार अनुपूरक के रूप में उपयोग के संबंध में पिपेरिन का और अध्ययन किया जाना चाहिए। वर्तमान में मानवों पर इस तरह का कोई शोध नहीं किया गया है। मेथीःशोध बताते हैं कि मेथी के बीज में ऐसे यौगिक होते हैं, जिनका अध्ययन उनके संभावित सूजन-रोधी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों के लिए किया गया है, जो शरीर में सूजन को कम करने में मदद कर सकते हैं क्योंकि इसमें linolenic and linoleic acids पाए जाते हैं। जबकि मेथी (ट्राइगोनेला फोनम-ग्रेकम) का इसके संभावित स्वास्थ्य लाभों के लिए अध्ययन किया गया है। मेथी का उपयोग पारंपरिक रूप से दर्द से राहत सहित कई बीमारियों के लिए किया जाता रहा है। हालांकि इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई निर्णायक वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि यह घुटनों के दर्द को ठीक कर सकता है। लौंगः शोध के मुताबिक लौंग का तेल, जो लौंग के पौधे से निकाला जाता है, उसका पारंपरिक रूप से घुटने के दर्द सहित दर्द से राहत के लिए उपयोग किया जाता रहा है। लौंग के तेल में मुख्य सक्रिय तत्व यूजेनॉल है, जिसमें सूजन-रोधी गुण होते हैं। ये गुण घुटने में दर्द और सूजन को कम करने में मदद कर सकते हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि विशेष रूप से घुटने के दर्द के लिए लौंग के तेल के उपयोग का समर्थन करने के लिए सीमित वैज्ञानिक प्रमाण हैं। जबकि कुछ अध्ययनों से पता चला है कि लौंग का तेल सामान्य रूप से दर्द से राहत के लिए प्रभावी हो सकता है। घुटने के दर्द के लिए इसकी प्रभावशीलता निर्धारित करने के लिए और शोध की आवश्यकता है। साथ ही घुटने के दर्द सहित किसी भी चिकित्सीय स्थिति के लिए लौंग के तेल का उपयोग करने से पहले चिकित्सक से परामर्श करना महत्वपूर्ण है। लौंग का तेल कुछ दवाओं के साथ परस्पर क्रिया कर सकता है और त्वचा में जलन जैसे दुष्प्रभाव पैदा कर सकता है। डॉ. सुशांत श्रीवास्तव,एमबीबीएस, एमएस (ऑर्थोपेडिक्स) एक अनुभवी ऑर्थोपेडिक सर्जन हैं, जो बाल चिकित्सा ऑर्थोपेडिक्स में विशेषज्ञता रखते हैं। वे वर्तमान में बिहार के किशनगंज में माता गुर्जरी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज और लायंस सेवा केंद्र अस्पताल में ऑर्थोपेडिक्स विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। इस वीडियो के बारे में उन्होंने कहा, “इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि घुटने के दर्द के इलाज के लिए विभिन्न संस्कृतियों में प्याज, लहसुन, काली मिर्च और सरसों के तेल में उबली हुई लौंग जैसे घरेलू उपचारों का उपयोग किया गया है। इन उल्लिखित चीजों में सूजन-रोधी गुण होते हैं, लेकिन यह समझने की जरूरत है कि इसे साबित करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।” उन्होंने आगे बताया, “वर्तमान चिकित्सा देखभाल साक्ष्य आधारित चिकित्सा पर काम करती है इसलिए ऐसी किसी भी चीज़ का उपयोग करना सही नहीं होगा जो वैज्ञानिक रूप से समर्थित न हो। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि घुटने का दर्द विभिन्न कारणों से हो सकता है। जैसे- ऑस्टियोआर्थराइटिस, चोट, सूजन, संक्रमण, इत्यादि। यह महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति सही निदान और उपचार में आगे की कार्ययोजना के लिए प्रमाणित स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श ले। यह भी समझना जरुरी है कि घरेलू उपचार कुछ मामलों और स्थितियों में दर्द को प्रबंधित करने में मदद कर सकते हैं, लेकिन वे कभी भी उपचार की सही पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को प्रतिस्थापित नहीं कर सकते हैं। ऐसे में जरुरी है कि शरीर में होने वाले किसी भी दर्द को नज़रअंदाज़ ना करें, अपने वजन को नियंत्रित रखें एवं शरीर को चलायमान रखें।” यदि आप घुटने के दर्द का अनुभव कर रहे हैं, तो अपने दर्द का कारण निर्धारित करने और उपचार लेने के लिए किसी विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श करना महत्वपूर्ण है। शीघ्र निदान और उपचार आपके घुटने को और अधिक नुकसान से बचाने और आपके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकता है।हमने पहले भी इस तरह के भ्रामक दावे की जाँच की है, जो कमर दर्द से संबंधित है। एक सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया जा रहा है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा कोविड-१९ पॉजिटिव पाए गए हैं जिसका कारण बिल गेट्स हैं। पोस्ट में कहा गया है कि बिल गेट्स कोविड-19 के वाहक हैं । जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा बिल्कुल गलत है। दावा ट्विवटर पर जारी एक पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को कोविड-19 बिग गेट्स के राजस्थान भ्रमण के दौरान हुई थी। पोस्ट में कहा गया है कि बिल गेट्स कोविड-19 के वाहक हैं और उन्हें वायरस कह कर संबोधित किया गया है। तथ्य जाँच क्या राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा कोरोना से संक्रमित हुए थे? उनका यह ट्ववीट 6 मार्च 2024 को दोपहर 1:19 बजे किया गया था। इसके बाद 10 मार्च 2024 की सुबह 10:20 AM बजे उन्होंने दोबारा अपने आधिकारिक ट्विवटर अकाउंट के जरिए जानकारी साझा की कि अब वे स्वस्थ हैं और उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई है। वे लिखते हैं- क्या बिल गेट्स के राजस्थान भ्रमण से भजनलाल शर्मा कोरोना संक्रमित हुए हैं? बिल गेट्स के आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट पर जारी जानकारी के अनुसार वे 26 फरवरी 2024 को भारत पहुंचे थे। वे भारत आने को लेकर काफी उत्साहित थे, जिसकी जानकारी उन्होंने अपने युट्युब वीडियो के जरिए दी है, जिसका शीर्षक My latest trip to India है। इसके बाद अपने भारत भ्रमण की जानकारी उन्होंने अपने ब्लॉग The Blog of Bill Gates के जरिए भी साझा की है, जिसमें उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की जानकारी दी है। इसके अलावा हैदराबाद में डॉली चाय वाला, नंदन नीलेकणी, भुवनेश्वर (ओडिशा) भ्रमण और यहां के मुख्यमंत्री नवीन पट्टनायक के साथ हुए मुलाकात की जानकारी भी साझा की है। इसके साथ ही वे गुजरात गए, जहां उन्होंने सरदार पटेल की प्रतिमा को देखा, जिसे Statue of Unity भी कहा जाता है। अंत में वे एक प्रतिष्ठित भारतीय औधोगिक घराने के कार्यक्रम में भी सम्मलित हुए। यहाँ उल्लेखनीय है कि इस दौरान उन्होंने कभी भी राजस्थान जाने या मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से किसी भी औपचारिक मुलाकात का जिक्र नहीं किया है। ऐसे में यह दावा करना कि बिल गेट्स कोरोना संक्रमण के वाहक रहे हैं, जिस कारण भजनलाल शर्मा संक्रमित हुए हैं, ये बिल्कुल गलत है। अतः उपरोक्त जानकारी के जरिए कहा जा सकता है कि बिल गेट्स के कारण राजस्थान के मुख्यमंत्री कोरोना से संक्रमित नहीं हुए हैं क्योंकि संक्रमण के बाद ही वे आइसोलेशन में चले गए थे और इस दौरान किसी से उनकी मुलाकात नहीं हुई इसलिए यह दावा बिल्कुल गलत है। इस तरह के दावे भारत के अन्य देशों के साथ आपसी सौहार्द के लिए खतरा हो सकते हैं इसलिए इन दावों का खंडन अनिवार्य है। मूत्राशय का कैंसर विश्व स्तर पर दस सबसे सामान्य कैंसर प्रकारों में से एक है। हर साल लगभग 600,000 लोगों को मूत्राशय के कैंसर का पता चलता है। इनमें से लगभग 200,000 लोग इस बीमारी के कारण मर जाते हैं। यदि प्रारंभिक अवस्था में इसका निदान किया जाता है, तो मूत्राशय का कैंसर अधिक उपचार योग्य है। परिचय मूत्राशय का कैंसर मूत्राशय के उपकला कोशिका अस्तर में विकसित होता है। मूत्राशय एक खोखले बैग जैसी संरचना है जो पेट के निचले हिस्से में स्थित होती है। मूत्राशय का प्राथमिक कार्य गुर्दे से उत्पादित मूत्र को तब तक संग्रहीत करना है जब तक कि यह पारित न हो जाए। हालांकि, लंबे समय तक भंडारण से मूत्र में हानिकारक पदार्थों और आंतरिक मूत्राशय के अस्तर के बीच संपर्क का खतरा भी बढ़ जाता है। यदि ऐसा बहुत लंबे समय तक और लगातार होता रहे तो इससे डीएनए परिवर्तन और कैंसर कोशिका विकास हो सकता है। मूत्राशय के कैंसर को ट्रिगर करने वाला सबसे आम विषाक्त पदार्थ तंबाकू है। मूत्राशय के कैंसर के विकास वाले सभी रोगियों में से 33% से अधिक में इसकी खपत का सकारात्मक इतिहास है। मूत्राशय कैंसर के प्रकार ट्यूमर की कोशिका संरचना के प्रकार और प्रभावित कोशिकाओं के आधार पर मूत्राशय के कैंसर तीन प्रकार के होते हैं। यूरोथेलियल कार्सिनोमा: यह मूत्राशय के उपकला अस्तर से विकसित होता है जिसे यूरोथेलियम कहा जाता है। यह मूत्राशय के कैंसर का सबसे आम प्रकार है। एडेनोकार्सिनोमा: यह श्लेष्म उत्पादक कोशिकाओं से बना होता है और यूरोथेलियम से विकसित होता है। स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा: यह तब विकसित होता है जब मूत्राशय की कोशिकाओं में पुरानी जलन होती है। उदाहरण के लिए, लंबे समय तक कैथेटर का उपयोग या बार-बार यूटीआई होना । यह मूत्राशय कैंसर का सबसे दुर्लभ प्रकार है। अन्य दुर्लभ प्रकार जैसे छोटे सेल कैंसर, सरकोमा, आदि भी देखे जा सकते हैं। मूत्राशय कैंसर होने के कारण और जोखिम कारक कार्सिनोजेनिक पदार्थों का सेवन या संपर्क मूत्राशय की कोशिकाओं में घातक परिवर्तन ला सकता है। यह परिवर्तन के विकास के जोखिम को बढ़ा सकता है। धूम्रपान: तंबाकू के लंबे समय तक संपर्क मूत्राशय में कैंसर सेल उत्परिवर्तन का कारण बनता है। लिंग: महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक जोखिम होता है आयु: 55 वर्ष की आयु के बाद विकास का खतरा बढ़ जाता है व्यवसाय: कार्सिनोजेनिक रसायनों जैसे रंजक, पेंट, घिसने आदि के व्यावसायिक जोखिम भी मूत्राशय के कैंसर के विकास को प्रभावित करते हैं पारिवारिक इतिहास: एक सकारात्मक पारिवारिक इतिहास कैंसर की संभावना को बढ़ाता है विकिरण जोखिम: कोशिका में हानिकारक डीएनए उत्परिवर्तन की ओर जाता है आवर्तक यूटीआई: आवर्तक मूत्राशय संक्रमण जोखिम को बढ़ा सकता है मूत्राशय की पथरी: मूत्राशय में बार-बार जलन मूत्राशय की कोशिका में अपरिवर्तनीय परिवर्तन की ओर ले जाती है जो बाद में दुर्दमता में प्रगति कर सकती है मूत्राशय कैंसर होने के संकेत और लक्षण प्रारंभिक अवस्था में, मूत्राशय का कैंसर स्पर्शोन्मुख रह सकता है या मूत्र में रक्त के कभी-कभी एपिसोड के साथ मौजूद हो सकता है। हालांकि, जैसे-जैसे ट्यूमर आकार में बढ़ने लगता है, अन्य लक्षण देखे जा सकते हैं: बार-बार हेमट्यूरिया (मूत्र में रक्त की उपस्थिति) अचानक पेशाब करने की इच्छा होना पेशाब करते समय दर्द पेशाब करते समय जलन महसूस होना श्रोणि में दर्द अनजाने में वजन कम होना पीठ दर्द दूर के अंग में मेटास्टेसिस के कारण लक्षण मूत्राशय के कैंसर के चरण स्टेजिंग TNM विधि (T- ट्यूमर, N- लिम्फ नोड्स, M – मेटास्टेसिस) द्वारा किया जाता है। T स्टेज – ट्यूमर के विकास और मेटास्टेसिस की सीमा के आधार पर ट्यूमर स्टेजिंग के पांच चरण हैं: T-0: मूत्राशय में कोई ट्यूमर नहीं है T-1: ट्यूमर यूरोथेलियम के अंतर्निहित संयोजी ऊतक में फैल गया है लेकिन मूत्राशय की मांसपेशियों की परत में नहीं T-2: ट्यूमर ने मूत्राशय की मांसपेशियों की परत में घुसपैठ कर ली है T-3: ट्यूमर पेरिवेसिकल ऊतक (मूत्राशय को घेरने वाला वसायुक्त ऊतक) में विकसित हो गया है। T-4: ट्यूमर पेरिवेसिकल ऊतक से परे फैल गया है N स्टेज – शामिल लिम्फ नोड्स की संख्या के आधार पर कुल चार चरण: N-0: कोई लिम्फ नोड्स शामिल नहीं हैं N-1: केवल 1 लिम्फ नोड शामिल है N-2: दो या अधिक लिम्फ नोड्स शामिल हैं M स्टेज – ट्यूमर मेटास्टेसिस हुआ है या नहीं, इसके आधार पर केवल दो चरण हैं: M-0: कोई मेटास्टेसिस नहीं M-1: दूर का मेटास्टेसिस मूत्राशय के कैंसर के निदान मूत्राशय के ट्यूमर का संदेह केवल जोखिम कारकों और नैदानिक संकेतों और लक्षणों के आधार पर किया जा सकता है। पुष्टि के लिए आगे के परीक्षणों की आवश्यकता है। मूत्राशय के ट्यूमर को आसपास के ऊतकों में उनके आयाम, स्थान और घुसपैठ को मापने के लिए विभिन्न स्कैन और परीक्षणों की मदद से कल्पना की जाती है। सिस्टोस्कोपी: ट्यूमर के विकास की उपस्थिति और सीमा की कल्पना करने के लिए एक ट्यूब में लगे एक छोटे कैमरे को मूत्रमार्ग से मूत्राशय में पारित किया जाता है। मूत्र कोशिका विज्ञान: यह मूत्र में घातक कोशिकाओं की उपस्थिति के लिए सूक्ष्म परीक्षा है। बायोप्सी: पुष्टिकरण परीक्षण जहां ट्यूमर के एक छोटे से हिस्से को लेकर ट्यूमर कोशिकाओं में घातक परिवर्तनों को देखने के लिए माइक्रोस्कोप के तहत जांच की जाती है। यह मूत्राशय के कैंसर की ग्रेडिंग में भी मदद करता है। ट्यूमर की सीमा और दूर के अंगों में मेटास्टेसिस के लिए इमेजिंग भी की जा सकती है: पीईटी-सीटी एमआरआई हड्डी स्कैन छाती का एक्स-रे मूत्राशय के कैंसर का उपचार उपचार प्रोटोकॉल ट्यूमर के विकास की सीमा और मेटास्टेसिस की उपस्थिति या अनुपस्थिति के संबंध में भिन्न होता है। निम्न-श्रेणी का ट्यूमर: यदि ट्यूमर छोटा है, और मूत्राशय की मांसपेशियों को शामिल नहीं किया है, तो निम्नलिखित विधियों का चयन किया जाता है: TURBT (मूत्राशय ट्यूमर का ट्रांसयूरेथ्रल लकीर): मूत्राशय के ऊतकों के केवल प्रभावित हिस्से को पूरे मूत्राशय को हटाने के बजाय मूत्रमार्ग के माध्यम से हटा दिया जाता है। मूत्राशय में कीमोथेरेपी (इंट्रावेसिकल कीमोथेरेपी): ड्रग्स जो अत्यधिक विभाजित कैंसर कोशिकाओं को मारते हैं, उन्हें सीधे मूत्राशय के अंदर रखा जाता है उच्च श्रेणी का ट्यूमर: यदि ट्यूमर आकार में बड़ा है और दूर के मेटास्टेसिस के साथ मांसपेशियों की परत में घुसपैठ कर चुका है तो प्रणालीगत उपचार प्रोटोकॉल का विकल्प चुना जाता है: सिस्टेक्टॉमी: इस प्रक्रिया में पूरे मूत्राशय को हटा दिया जाता है और इसे आंत या बैग से जोड़कर मूत्र के पारित होने के लिए एक बाईपास बनाया जाता है। प्रणालीगत कीमोथेरेपी: इसमें सभी कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए एंटी-कैंसर दवाएं अंतःशिरा रूप से दी जाती हैं। प्रणालीगत रेडियोथेरेपी: इसमें तेजी से विभाजित कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने के लिए उच्च-ऊर्जा तरंगों का उपयोग किया जाता है इम्यूनोथेरेपी: विशेष रूप से कैंसर कोशिकाओं के खिलाफ एंटीबॉडी प्रशासित होते हैं। लक्षित चिकित्सा मूत्राशय कैंसर से रोकथाम स्वस्थ जीवनशैली को बनाए रखकर शरीर में किसी भी कैंसर के खतरे को कम किया जा सकता है। रोकथाम के सामान्य तरीके: फलों और सब्जियों का सेवन रोकथाम के विशिष्ट तरीके: धूम्रपान और तंबाकू के सेवन से बचें कार्सिनोजेनिक रसायनों के संपर्क को कम करना कैंसर के इतिहास या पारिवारिक इतिहास के मामले में बार-बार स्कैन और चेकअप सोशल मीडिया पोस्ट द्वारा दावा किया जा रहा है कि गर्भावस्था के दौरान विशेष आहार लेने से गर्भ में पल रहे शिशु का मानसिक और शारीरिक विकास को प्रभावित होता है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा ज्यादातर गलत है। दावा एक इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए इस शीर्षक ‘गर्भवती महिला ऐसा करें बच्चा हीरा पैदा होगा’ के अंतर्गत दावा किया जा रहा है कि जिनके गर्भ में बच्चा पल रहा है वह दोपहर को 11 से 2 बजे तक दही जरुर खाएं। बच्चे का दिमाग बहुत तेज होगा और बुद्धिमान होगा। अगर संतरा खाओगे तो बच्चे का रंग गोरा होगा। अगर कच्चा नारियल खाओगे तो डिलिवरी आसान होगी। अन्य शोध बताते हैं कि गर्भावस्था से पहले और उसके दौरान स्वस्थ आहार लेने सेGestational Diabetes Mellitus, समय से पहले बच्चे का जन्म (preterm birth), मोटापे से संबंधित जटिलताओं, गर्भावधि के दौरान उच्च रक्तचाप जैसी जटिलताओं के जोखिमों को कम किया जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित आलेख के अनुसार गर्भाधान से लेकर स्तनपान तक महिलाओं को अपने पोषण पर विशेण रुप से ध्यान देना चाहिए। क्या गर्भावस्था के दौरान दही का सेवन बच्चे की मानसिक क्षमता को बढ़ाता है? कुछ हद तक। UCLA के अनुसार बिना मिठास वाला दही मस्तिष्क के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि दही में Zinc, Choline और Iodine प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। Iodine बच्चों के मस्तिष्क और neurological विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि Iodine ही Thyroid Hormone बनाने में मदद करता है। Iodine की थोड़ी भी कमी बच्चे के मस्तिष्क विकास जैसे- बौद्धिक एवं तार्किक शक्ति को प्रभावित करती है। हालांकि ऐसा कोई ‘सुपरफूड’ नहीं है, जो पूर्ण रुप से हर प्रकार के विकास को गति दे लेकिन कुछ खाद्य पदार्थ विशेष एवं आवश्यक पोषक तत्वों से भरे होते हैं, मगर किसी भी तरह के आहार को लेकर चिकित्सीय सलाह आवश्यक है क्योंकि संक्रमण की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता है। क्या संतरा बच्चे की त्वचा की रंगत को निखारता है? नहीं। इस तरह का कोई भी प्रमाण या शोध मौजूद नहीं है, जो यह दावा करता हो कि संतरा का सेवन बच्चे की रंगत को निखारता है। हालांकि शोध बताते हैं कि गर्भावस्था के दौरान संतरा खाना आमतौर पर सुरक्षित और स्वस्थ माना जाता है। संतरा कई आवश्यक पोषक तत्वों का एक बेहतर स्रोत है, जो मां और बच्चे दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही संतरा फोलेट (विटामिन बी) का भी अच्छा स्रोत होता है, जो शिशुओं में न्यूरल ट्यूब दोष को रोकने में मदद करता है। न्यूरल ट्यूब दोष एक गंभीर जन्म दोष है, जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है। लेकिन संतरा और बच्चे की रंगत को लेकर कोई ठोस प्रमाण या शोध मौजूद नहीं है। क्या नारियल खानेसे दर्द रहित प्रसव होता है? नहीं। इस तरह का कोई भी प्रमाण या शोध मौजूद नहीं है, जो यह दावा करता हो कि गर्भावस्था के दौरान नारियल का सेवन करने से दर्द रहित प्रसव होता है। हालांकि कई शोध पत्र हैं, जो नारियल पानी को प्राथमिकता देने की बात कर रहे हैं। वहीं युनिसेफ द्वारा प्रकाशित आलेख में बताया गया है कि गर्भावस्था के सांतवे महीने में नारियल तेल का सेवन फायदेमंद होता है लेकिन संपूर्ण सफेद नारियल का सेवन को लेकर कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। इस दावे की जाँच को लेकर आहार विशेषज्ञ निधि सरीन बताती हैं, “गर्भावस्था से पहले और उसके दौरान पोषक तत्वों से भरपूर आहार मां और बच्चा दोनों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसलिए महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम और विटामिन से भरपूर आहार का सेवन करना चाहिए। हालांकि ऐसा कोई दावा नहीं है, जिससे यह साबित होता हो कि दही, संतरा या नारियल गर्भावस्था के दौरान उक्त फायदा प्रदान करता है।” स्त्री रोग विशेषज्ञडॉ. मीना सावंत बताती हैं, “गर्भावस्था के दौरान मां द्वारा लिए गए आहार ही बच्चे के विकास में भूमिका निभाते हैं इसलिए गर्भावस्था से लेकर बच्चे को स्तनपान कराने तक मां को सुरक्षित और स्वस्थ आहार का सेवन करना चाहिए। जैसे – फॉलिक एसिड एवं आयरन से भरपूर आहार, हरी पत्तेदार फल सब्जियां, आदि। हालांकि ऐसा कोई खास आहार नहीं है, जो केवल गर्भावस्था के दौरान ही लेना जरुरी है। कुल मिलाकर देखा जाए, तो मां का आहार संतुलित एवं पौष्टिक होना चाहिए।” अतः उपरोक्त शोध पत्रों एवं चिकित्सकों के बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि यह दावा बिल्कुल गलत है। हमने पहले भी प्रसव से जुड़े भ्रामक दावों की पड़ताल की है। बेहतर है कि गर्भावस्था के दौरान अपने चिकित्सक द्वारा बताए गए दिशा-निर्देशों का पालन करें एवं किसी भी तरह की गलत एवं भ्रामक दावों से सावधान रहें।
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