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  • Last Updated on अप्रैल 30, 2024 by Neelam Singh सारांश एक सोशल मीडिया पोस्ट के अनुसार चुनाव आयोग द्वारा मुहैया कराई जा रही चुनावी स्याही में सुअर की चर्बी मिली हुई है। जब हमने इस पोस्ट का तथ्य जाँच किया तब पाया कि यह दावा बिल्कुल गलत है। दावा X (ट्विवटर) पर जारी एक पोस्ट के जरिए दावा किया जा रहा है कि चुनाव आयोग द्वारा मुहैया कराई जा रही चुनावी स्याही में सुअर की चर्बी मिली हुई है। तथ्य जाँच चुनाव में स्याही क्यों लगाई जाती है? लोकसभा चुनाव 2024 में मतदान की चरणबद्ध प्रक्रिया जारी है। मतदान केंद्र पर मौजूद चुनाव कर्मी मतदाता की अंगुली पर यह निशान लगाकर तय कर देते हैं कि ना सिर्फ उस नागरिक ने मतदान किया है, बल्कि उसका मतदान का अधिकार सुरक्षित है। यह चुनावी स्याही अमिट होती है जो किसी प्रकार के रिमूवर से साफ नहीं होती है। मतदान के दोहराव और झूठे-फर्जी मतदान को रोकने में काम आने वाली यह स्याही दशकों से भारत के नागरिकों के सुरक्षित मतदान अधिकार की प्रतीक है। 1951 के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RoPA) में स्याही का उल्लेख है। धारा 61 में कहा गया है कि अधिनियम के तहत नियम बनाए जा सकते हैं “प्रत्येक मतदाता के अंगूठे या किसी अन्य उंगली पर अमिट स्याही से निशान लगाने के लिए जो मतदान केंद्र पर मतदान के उद्देश्य से मतपत्र या मतपत्र के लिए आवेदन करता है।” क्या है चुनावी स्याही का इतिहास? इस स्याही को देश में एकमात्र कंपनी मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड तैयार करती है। लोकतंत्र की अमिट निशानी बन चुकी इस स्याही का इतिहास दशकों पुराना और मैसूर राजवंश से जुड़ा है। भारत की स्वाधीनता से पहले कर्नाटक के मैसूर में वाडियार राजवंश का शासन चलता था। वाडियार राजवंश के कृष्णराज ने 1937 में पेंट और वार्निश की एक फैक्ट्री खोली, जिसका नाम मैसूर लाख एंड पेंट्स रखा। स्वाधीनता के कुछ समय बाद यह फैक्ट्री कर्नाटक सरकार ने अधिग्रहित कर ली और यहां चुनावी स्याही का उत्पादन शुरू हुआ। साल 1989 में इस फैक्ट्री का नाम मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड (MPVL) किया गया। MPVL के जरिए चुनाव आयोग या चुनाव से जुड़ी एजेंसियों को ही इस स्याही की सप्लाई की जाती है। यह कंपनी और भी कई तरह के पेंट बनाती है, लेकिन इसकी मुख्य पहचान अमिट चुनावी स्याही (indelible ink) बनाने के लिए ही है। इस नीले रंग की स्याही को आम चुनाव में शामिल करने का श्रेय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है। चुनावी स्याही में किस रसायन का प्रयोग किया जाता है? काउंसिल आफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च- Council of Scientific and Industrial Research (CSIR) के वैज्ञानिकों ने साल 1952 में नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी में इस अमिट स्याही का आविष्कार किया गया था। चुनाव के दौरान लगने वाली इस स्याही को बनाने में सिल्वर नाइट्रेट AgNO3 नामक रसायन का उपयोग किया जाता है। यह एक रंगहीन यौगिक है, जो सूर्य के प्रकाश सहित पराबैंगनी प्रकाश के संपर्क में आने पर दिखाई देता है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme) की एक रिपोर्ट के अनुसार, सिल्वर नाइट्रेट की सांद्रता जितनी अधिक होगी, मान लीजिए लगभग 20 प्रतिशत, तो स्याही की गुणवत्ता उतनी ही अधिक होगी। स्याही लगाने के बाद 72 घंटों तक इस पर साबुन, डिटर्जेंट का असर नहीं होता है। सरकार की MyGov वेबसाइट के अनुसार, “इस पानी आधारित स्याही में अल्कोहल जैसा एक विलायक (solvent) भी होता है, जिससे यह स्याही तेजी से सूखती है। हालांकि इसकी रासायनिक संरचना और प्रत्येक घटक की मात्रा सहित इस स्याही को बनाने का सटीक प्रोटोकॉल कई लोगों को ज्ञात नहीं है।” आज CSIR का यह नवाचार सफल हो रहा है क्योंकि यह अमिट स्याही 25 से अधिक देशों में निर्यात की जाती है, जिनमें कनाडा, घाना, नाइजीरिया, मंगोलिया, मलेशिया, नेपाल, दक्षिण अफ्रीका और मालदीव शामिल है। हालांकि चूंकि विभिन्न देश स्याही लगाने के लिए अलग-अलग तरीकों का पालन करते हैं इसलिए कंपनी ग्राहक विनिर्देशों के अनुसार स्याही की आपूर्ति करती है। जैसे- कंबोडिया और मालदीव में मतदाताओं को स्याही में अपनी उंगली डुबोनी पड़ती है जबकि बुर्किना फासो में स्याही को ब्रश से लगाया जाता है और तुर्की में नोजल का उपयोग किया जाता है। क्या चुनावी स्याही से किसी तरह का संक्रमण होता है? शोध बताते हैं एक 30 वर्षीय पुरुष दर्द, सूजन, जलन और दोनों हाथों की उंगलियों पर काले धब्बे की शिकायत के साथ आपातकालीन स्थिति में चिकित्सक के संपर्क में आया था। मरीज ने एक चुनाव के दौरान एक मतदान केंद्र पर मतदान अधिकारी (Presiding Officer) के रूप में काम किया था। उसका काम मतदाताओं की उंगलियों पर अमिट मतदाता स्याही लगाना था। जब भी वह मतदाताओं की उंगली पर स्याही लगाता था तो अनजाने में उसकी उंगलियों पर भी स्याही लग जाती थी क्योंकि एप्लीकेटर की लंबाई कम होती थी। मतदान के दिन के अंत में उसकी अधिकांश उंगलियां स्याही से सनी हुई थीं। देर शाम तक मरीज को अपनी उंगलियों पर जलन होने लगी। अगले दिन उसकी सभी उंगलियों में सूजन, दर्द और लाली थी और एक छोटा सा छाला भी था। 10-18% की सांद्रता में सिल्वर नाइट्रेट को त्वचा के लिए सुरक्षित माना जाता है। यदि स्याही पुरानी है, तो अल्कोहल के वाष्पीकरण के कारण इसकी सांद्रता बढ़ सकती है, जिससे त्वचा में जलन हो सकती है। उंगलियों पर बार-बार सिल्वर नाइट्रेट युक्त स्याही लगाने से जलन हो सकती है। त्वचा के साथ रसायन के बार-बार संपर्क से ऊष्माक्षेपी रासायनिक प्रतिक्रिया उत्पन्न हो सकती है, जिससे छाले हो सकते हैं। चुनाव पूर्व प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान चुनाव स्याही से किसी तरह की प्रतिक्रिया या जलन के बारे में नहीं बताया गया इसलिए मरीज ने कोई सावधानी नहीं बरती। यह मामला इंगित करता है कि अमिट स्याही के उपयोग से जलने का जोखिम मौजूद है। उंगलियों पर दाग लगने से बचाने के लिए एप्लिकेटर लंबा होना चाहिए और चुनाव अधिकारियों को नियमित अभ्यास के रूप में सुरक्षात्मक दस्ताने का उपयोग करना चाहिए। क्या चुनावी स्याही में सुअर की चर्बी मिली हुई है? नहीं। जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है कि यह स्याही सिल्वर नाइट्रेट नामक रसायन से निर्मित की जाती है। साल 2019 में भी ॐ chauhan नामक एक प्रोफाइल से ऐसे ही फर्जी दावे किए गए थे। हालांकि इस तरह के दावों का खंडन कई बार किया गया है। आप इस वीडियो में भी देख सकते हैं। अतः उपरोक्त शोध पत्र एवं तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि चुनावी स्याही में सुअर की चर्बी मिलने का दावा बिल्कुल गलत है। देखा गया है कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए अक्सर इस प्रकार के अनर्गल दावे किये जाते हैं जिससे मतदान प्रक्रिया प्रभावित हो सके। सिर्फ चुनाव नहीं अपितु हमने पहले भी नूडल्स में सड़ा हुआ मैदा और सुअर का मांस होता है, जैसे दावों की तथ्य जांच की है।
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