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  • Last Updated on जनवरी 31, 2024 by Neelam Singh सारांश एक सोशल मीडिया पोस्ट द्वारा दावा किया जा रहा है कि पैरों को करेले के रस में डुबोने से बिना सेवन किए ही जीभ पर करेले और नीम के स्वाद की कड़वाहट को महसूस किया जा सकता है। और ऐसा करने से मधुमेह की बीमारी में मदद मिलती है। जब हम हमने इस पोस्ट की जांच की तब पाया कि यह दावा गलत है। दावा एक सोशल मीडिया पोस्ट द्वारा दावा किया जा रहा है कि पैरों को करेले के रस में डुबोने से बिना सेवन किए ही जीभ पर करेले और नीम के स्वाद की कड़वाहट को महसूस किया जा सकता है। और ऐसा करने से मधुमेह की बीमारी में मदद मिलती है। तथ्य जांच करेले के रस में मौजूद कौन से यौगिक मधुमेह को प्रभावित करते हैं? बायोएक्टिव यौगिकों की उपस्थिति के कारण करेले का रस मधुमेह पर प्रभाव डालता है। ऐसा करेले में मौजूद चारैन्टिन, विसीन और पॉलीपेप्टाइड-पी के संभावित एंटीडायबिटिक प्रभावों के कारण होता है। ये यौगिक इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार और आंतों में ग्लूकोज अवशोषण को कम करके रक्त शर्करा के स्तर को विनियमित करने में मदद कर सकते हैं। हालांकि मधुमेह के प्रबंधन में इन यौगिकों के प्रभावशीलता को पूरी तरह से समझने के लिए और शोध की आवश्यकता है। क्या वीडियो में दिखाए गए दावे का समर्थन करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण है? नहीं। इस विचार का समर्थन करने के लिए कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, जो बताता हो कि करेले के रस में पैर भिगोना मधुमेह के प्रबंधन के लिए फायदेमंद है। करेला को उसकी कड़वाहट के लिए जाना जाता है। करेले का रस सीधे पैरों पर लगाना मधुमेह प्रबंधन के लिए फायदेमंद है या नहीं, अभी इस विषय पर कोई शोध नहीं किया गया है। मधुमेह प्रबंधन में आमतौर पर जीवनशैली में बदलाव करना महत्वपूर्ण होता है। जैसे- संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, दवा (यदि निर्धारित हो) और रक्त शर्करा के स्तर की नियमित जांच करना। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि करेले के कुछ संभावित लाभ हो सकते हैं लेकिन उन्हें पारंपरिक चिकित्सा उपचारों या सलाह का स्थान नहीं लेना चाहिए। परासरण (osmotic diffusion) क्या है? परासरण (osmosis) उस प्रक्रिया को कहते हैं, जब कम विलेय सांद्रता वाले क्षेत्र से उच्च सांद्रता वाले क्षेत्र तक चयनात्मक पारगम्य झिल्ली (selectively permeable membrane) के द्वारा पानी के अणुओं की गति होती है। इस जैविक प्रक्रिया का उद्देश्य झिल्ली के दोनों हिस्सों में विलेय सांद्रता (solute concentrates) को बराबर करना है। झिल्ली पानी को गुजरने की अनुमति देती है लेकिन कुछ विलेय पदार्थों को रोकती है। परासरण विभिन्न जैविक प्रक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे ही कोशिकाओं में पोषक तत्वों का अवशोषण होता है। त्वचा में परासरण का क्या अर्थ है? त्वचा में परासरण उचित जलयोजन बनाए रखने के लिए होता है। इस प्रक्रिया में कोशिकाओं की झिल्ली में पानी की गति होती है। त्वचा एक अर्ध-पारगम्य अवरोधक होने के कारण पानी को परासरण के माध्यम से अंदर और बाहर जाने की अनुमति देती है। उदाहरण के लिए, जब आप ग्लिसरीन या हाइलूरोनिक एसिड जैसे ह्यूमेक्टेंट युक्त मॉइस्चराइज़र लगाते हैं, तो ये पदार्थ पानी को आकर्षित करते हैं और त्वचा में नमी बनाए रखते हैं, जिससे परासरण को बढ़ावा मिलता है। इसी तरह, नहाने से त्वचा हाइड्रेट हो सकती है क्योंकि पानी त्वचा की कोशिकाओं में चला जाता है। त्वचा में होने वाली परासरण की प्रक्रियाएं नमी संतुलन और समग्र त्वचा स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। क्या त्वचा में होने वाली संवेदनाएं या लगाने वाले पदार्थ जीभ पर महसूस किए जा सकते हैं? नहीं। त्वचा में होने वाली संवेदनाएं या पदार्थ आमतौर पर जीभ पर महसूस नहीं होते हैं। स्पर्श की अनुभूति या पदार्थों के अनुप्रयोग आमतौर पर उस क्षेत्र के लिए विशिष्ट होते हैं, जहां वो घटना हो रही होती है। शरीर के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रिसेप्टर्स और तंत्रिका मार्ग होते हैं, जो मस्तिष्क तक संकेत पहुंचाते हैं और हमें स्थानीय तरीके से संवेदनाओं का अनुभव होता है। उदाहरण के लिए त्वचा में स्पर्श, दबाव, तापमान और दर्द के लिए रिसेप्टर्स होते हैं, जबकि जीभ में स्वाद के लिए रिसेप्टर्स होते हैं, जो विभिन्न स्वादों का पता लगाते हैं। ये संवेदी प्रणालियां स्वतंत्र रूप से काम करती हैं और शरीर के एक क्षेत्र से जानकारी दूसरे क्षेत्र में नहीं जाती हैं। क्या पानी त्वचा में अवशोषित होकर जीभ तक पहुंच सकता है? नहीं। त्वचा पर लगाया गया पानी अवशोषण के माध्यम से सीधे जीभ तक नहीं पहुंच सकता है। त्वचा एक बाहरी परत है, जो शरीर के आंतरिक अंगों को किसी नुकसान से बचाती हैं। साथ ही पानी का अवशोषण त्वचा की सबसे बाहरी परत, स्ट्रेटम कॉर्नियम तक सीमित होता है। यह अवशोषण मुख्य रूप से जलयोजन के लिए होता है और इसमें पानी आंतरिक अंगों या जीभ जैसे अन्य दूर के हिस्सों तक नहीं पहुंचता है। त्वचा पर लगाए गए पानी या पदार्थों से संबंधित संवेदनाएं स्थानीय होती हैं और जीभ जैसे आंतरिक अंगों तक सीधे संचारित नहीं होती हैं। जनरल फिजिशियन डॉ. अतुल कुमार वशिष्ठ ने बताया, “इस विचार का समर्थन करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि करेला को लगातार पैरों से कुचलने से मधुमेह के प्रबंधन में कोई सीधा लाभ होता है। मधुमेह प्रबंधन में आमतौर पर एक स्वस्थ जीवनशैली बनाए रखना शामिल है, जिसमें संतुलित आहार, नियमित शारीरिक गतिविधि, स्वास्थ्य देखभाल और चिकित्सक द्वारा बताई गई दवाएं शामिल हैं। जबकि करेले को कभी-कभी इसके संभावित रक्त शर्करा-कम करने वाले गुणों के लिए उपयोग किया जाता है लेकिन करेले को पैरों से कुचलना मधुमेह प्रबंधन के लिए एक मान्यता प्राप्त रणनीति नहीं है। मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपनी स्थिति के प्रबंधन के लिए साक्ष्य-आधारित मार्गदर्शन के लिए अपने चिकित्सक से परामर्श लें। डॉ अन्नुसुइया गोहिल, बीएएमएस, ने कहा, “जैसा कि आयुर्वेद में वर्णित है कि करेला कट्टू (तीखा) और तिक्त (कड़वा) रस या स्वाद में प्रमुख है। इस प्रकार इसमें मधुर (मीठा) रस को संतुलित करने की क्षमता है लेकिन आयुर्वेद में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि इसका बाहरी प्रयोग मधुमेह के उपचार में सहायक हो सकता है। वास्तव में यह वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध नहीं है और इस पर कोई अध्ययन भी नहीं किया गया है।” अतः उपरोक्त शोध पत्रों एवं चिकित्सक के बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि वीडियो में दिखाया जा रहा दावा निरर्थक है। मधुमेह को लेकर अनेक भ्रामक जानकारियां मौजूद हैं लेकिन जरुरी है कि आप अपने चिकित्सक के संपर्क करें क्योंकि मधुमेह को नज़र अंदाज करना आपकी सेहत के लिए बिल्कुल सही नहीं है।
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